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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/२५०
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अनुश्री साव
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<noinclude><pagequality level="3" user="अनुश्री साव" />{{rh|२१८|सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय}}</noinclude>रहे थे कि पंजाब में कोई हड़ताल नहीं होगी। इसलिए जब पंजाबकी राजधानी में भी ऐसी पूर्ण हड़ताल हो गई तो उन्हें बड़ा दुःख और आश्चर्य हुआ। यह भी कहा जाता है कि उन्होंने कहा, इस तरहकी मुकम्मल हड़ताल करानेकी कीमत में नेताओंसे अवश्य वसूल करूँगा।
तीसरे पहर ब्रैडलों हॉलमें एक सभा हुई जिसमें हजारों आदमी उपस्थित थे। लाहौर में ऐसी सभा पहले कभी नहीं हुई थी। सर माइकेल ओ'डायरने सी० आई० डी० के सुपरिन्टेन्डेन्टको इस सभा में उपस्थित रहने के लिए विशेष रूपसे तैनात कर दिया। इस सभामें जो भाषण हुए, उनका पूरा विवरण लिखा गया। हमने उसे देखा है। यद्यपि इन भाषणोंका लहजा पुरजोर था और रौलट कानूनको रद करानेके जनताके
अधिकारपर आग्रह प्रकट किया गया था, लेकिन उनमें राजद्रोहकी कोई बात नहीं थी, और निश्चय ही ऐसा कुछ नहीं था जिसका किसी भी रूपमें इस प्रकार अर्थ लगाया जाये कि वह हिंसाके लिए उकसावा था। ७ और ८ को कुछ नहीं हुआ।
९ अप्रैलको रामनवमी वैसे ही मनाई गई, जैसे अमृतसर में मनाई गई। लोग आनन्दोत्सव में लगे रहे और इस अवसरका उपयोग उन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानों में परस्पर भाईचारेको बढ़ाने के लिए किया। इस प्रकार पहले जिस त्योहारका स्वरूप शुद्ध धार्मिक हुआ करता था, सौभाग्यसे वह पिछले कुछ वर्षोंसे एक राष्ट्रीय त्योहारमें बदल गया है। जुलूसके साथ सरकारी अधिकारी भी थे। जहाँ-कहीं भी लोगोंको उनकी उपस्थितिका ज्ञान हुआ, उन्होंने हर्षध्वनि की।
इस प्रकार १० तारीखतक सब कुछ शान्त था, लेकिन सर माइकेल ओ'डायर नहीं। उन्हें विदित था कि श्री गांधीको डा० सत्यपालन अमृतसर आने और सत्याग्रहका अपना सिद्धान्त समझाने के लिए आमन्त्रित किया है। उनको यह भी विदित था कि श्री गांधी उनके और संन्यासी स्वामी श्रद्धानन्दजीके निमन्त्रणपर दिल्ली जानेवाले थे, और ८ तारीखको बम्बईसे दिल्लीके लिए प्रस्थान कर चुके थे। सर माइकेलसे यह सहन नहीं हुआ और वाइसरायकी स्वीकृति लेकर उन्होंने पंजाबमें श्री गांधीका प्रवेश रोक दिया और पहले ही स्टेशनपर<ref>पलवल स्टेशनपर, जो दिल्ली और मथुरा के बीच पड़ता है।</ref> उन्हें गिरफ्तार करके बम्बई प्रेसिडेंसी भेज दिया, जहाँ उन्हें नजरबन्द कर दिया गया। श्री गांधी की गिरफ्तारी और नजरबन्दीका समाचार
लोगोंको १० तारीखको लाहौरमें "सिविल ऐंड मिलिटरी गजट" में छपनेपर मिला, और बिना किसी संगठन या प्रयत्नके तुरन्त दुकानें बन्द हो गईं। ४ बजते-बजते सब काम ठप हो गया। कुछ नागरिकोंने एक जुलूस बनाया और माल रोडकी ओर चल दिये। अनारकली पहुँचते-पहुँचते यह जुलूस बहुत बड़ा हो गया, किन्तु चूंकि ६ अप्रैलको
पुलिसने जुलूसको माल रोडपर आगे रोक दिया था, अत: इस जुलूसका अधिकांश भाग फॉर्मन क्रिश्चियन कालेजके नजदीक रुक गया। किन्तु लगभग तीन चार सौ आदमियोंने जिनमें विद्यार्थी भी थे, माल रोडपर जानेका निश्चय किया। उनका इरादा यह था कि गवर्नमेंट हाउस जायें और श्री गांधीकी रिहाईको माँग करें। जैसे ही यह पता लगा,
पुलिसका एक दस्ता भीड़कें पीछेसे होकर निकला, और जुलसके आगे जाकर घूम पड़ा<noinclude>{{smallrefs}}</noinclude>
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अनुश्री साव
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तीसरे पहर ब्रैडलों हॉलमें एक सभा हुई जिसमें हजारों आदमी उपस्थित थे। लाहौर में ऐसी सभा पहले कभी नहीं हुई थी। सर माइकेल ओ'डायरने सी० आई० डी० के सुपरिन्टेन्डेन्टको इस सभा में उपस्थित रहने के लिए विशेष रूपसे तैनात कर दिया। इस सभामें जो भाषण हुए, उनका पूरा विवरण लिखा गया। हमने उसे देखा है। यद्यपि इन भाषणोंका लहजा पुरजोर था और रौलट कानूनको रद करानेके जनताके
अधिकारपर आग्रह प्रकट किया गया था, लेकिन उनमें राजद्रोहकी कोई बात नहीं थी, और निश्चय ही ऐसा कुछ नहीं था जिसका किसी भी रूपमें इस प्रकार अर्थ लगाया जाये कि वह हिंसाके लिए उकसावा था। ७ और ८ को कुछ नहीं हुआ।
९ अप्रैलको रामनवमी वैसे ही मनाई गई, जैसे अमृतसर में मनाई गई। लोग आनन्दोत्सव में लगे रहे और इस अवसरका उपयोग उन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानों में परस्पर भाईचारेको बढ़ाने के लिए किया। इस प्रकार पहले जिस त्योहारका स्वरूप शुद्ध धार्मिक हुआ करता था, सौभाग्यसे वह पिछले कुछ वर्षोंसे एक राष्ट्रीय त्योहारमें बदल गया है। जुलूसके साथ सरकारी अधिकारी भी थे। जहाँ-कहीं भी लोगोंको उनकी उपस्थितिका ज्ञान हुआ, उन्होंने हर्षध्वनि की।
इस प्रकार १० तारीखतक सब कुछ शान्त था, लेकिन सर माइकेल ओ'डायर नहीं। उन्हें विदित था कि श्री गांधीको डा० सत्यपालन अमृतसर आने और सत्याग्रहका अपना सिद्धान्त समझाने के लिए आमन्त्रित किया है। उनको यह भी विदित था कि श्री गांधी उनके और संन्यासी स्वामी श्रद्धानन्दजीके निमन्त्रणपर दिल्ली जानेवाले थे, और ८ तारीखको बम्बईसे दिल्लीके लिए प्रस्थान कर चुके थे। सर माइकेलसे यह सहन नहीं हुआ और वाइसरायकी स्वीकृति लेकर उन्होंने पंजाबमें श्री गांधीका प्रवेश रोक दिया और पहले ही स्टेशनपर<ref>पलवल स्टेशनपर, जो दिल्ली और मथुरा के बीच पड़ता है।</ref> उन्हें गिरफ्तार करके बम्बई प्रेसिडेंसी भेज दिया, जहाँ उन्हें नजरबन्द कर दिया गया। श्री गांधी की गिरफ्तारी और नजरबन्दीका समाचार
लोगोंको १० तारीखको लाहौरमें "सिविल ऐंड मिलिटरी गजट" में छपनेपर मिला, और बिना किसी संगठन या प्रयत्नके तुरन्त दुकानें बन्द हो गईं। ४ बजते-बजते सब काम ठप हो गया। कुछ नागरिकोंने एक जुलूस बनाया और माल रोडकी ओर चल दिये। अनारकली पहुँचते-पहुँचते यह जुलूस बहुत बड़ा हो गया, किन्तु चूंकि ६ अप्रैलको पुलिसने जुलूसको माल रोडपर आगे रोक दिया था, अत: इस जुलूसका अधिकांश भाग फॉर्मन क्रिश्चियन कालेजके नजदीक रुक गया किन्तु लगभग तीन चार सौ आदमियोंने जिनमें विद्यार्थी भी थे, माल रोडपर जानेका निश्चय किया। उनका इरादा यह था कि गवर्नमेंट हाउस जायें और श्री गांधीकी रिहाईको माँग करें। जैसे ही यह पता लगा, पुलिसका एक दस्ता भीड़कें पीछेसे होकर निकला, और जुलसके आगे जाकर घूम पड़ा<noinclude></noinclude>
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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/८९
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Manisha yadav12
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<noinclude><pagequality level="3" user="Manisha yadav12" /></noinclude>{{c|{{larger|'''३५. दक्षिण भारतके बाढ़-पीड़ितोंको सहायता'''}}}}
दक्षिण भारतके पीड़ितोंकी ओरसे निकाली गई अपीलके प्रति लोग लगातार बहुत अच्छा उत्साह दिखा रहे हैं। प्रतिदिन नकद और कपड़े आ रहे हैं और उनका ढेर लगता जा रहा है। किन्तु सबसे अधिक सन्तोषजनक बात यह है कि गरीब लोग बड़ी तत्परतासे सहायताके लिए आगे आ रहे हैं। अछूत लोगोंने भी आगे बढ़कर उदारतापूर्वक सहायता दी है। मेरे सामने एक हृदयस्पर्शी पत्र पड़ा हुआ है। इसमें एक पूरे परिवारने विशेष रूपसे आत्म-त्याग करके बचाया हआ धन भेजा है। प्रोपराइटरी हाईस्कूल के अध्यापकों तथा छात्रोंने ७२० रुपये भेजे हैं। महाविद्यालयने ५०० रुपये इकठे किये हैं, जिसमें से उन्होंने वस्त्रहीन लोगोंके लिए २०० रुपयेका खद्दर खरीदा है। मुझे विश्वास है कि इस प्रकारके दानके बारेमें जानकारी प्राप्त करके हमारे पीड़ित देशभाइयोंको सच्ची सान्त्वना प्राप्त होगी। मुझे आशा है, कार्यकर्ता इस बातको याद रखेंगे कि प्रकृतिने मुसलमान और हिन्दू, ईसाई और यहूदी किसीके बीच कोई भेद नहीं किया है, इसलिए वे भी अपने-अपने संगठनोंके जरिये सहायता भेजते समय इस प्रकारका कोई भेद-भाव नहीं बरतेंगे। किन्तु यदि वे सहायताको अपने ही सम्प्रदायतक सीमित रखेंगे तो यह असह्य होगा।
{{left|[अंग्रेजीसे]<br>'''यंग इंडिया,''' २८-८-१९२४}}
{{c|{{larger|'''३६. भाषण: बम्बई-निगमके अभिनन्दनके उत्तरमें'''}}}}
{{right|२९ अगस्त, १९२४}}
निगमके अध्यक्ष महोदय, सदस्यगण, भाइयो और बहनो,
मैं आप लोगों के सम्मुख पहले अपनी मातृभाषामें बोला। मैं इसके लिए माफी माँगनेकी जरूरत नहीं समझता। परन्तु बम्बई विभिन्न लोगोंका निवास स्थान है, इसलिए मुझे अपने उत्तरका आशय अंग्रेजीमें भी बताना चाहिए।
इस अभिनन्दन-पत्र<ref> १. यह सर कावसजी जहाँगीर भवनमें गांधीजीके रोगमुक्त होनेपर सन्तोष प्रकट करनेके लिए बुलाई गई सभामें दिया गया था और इसमें उनकी अमूल्य सेवाओंका उल्लेख था। </ref> और इसमें प्रकट किये गये भावोंके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। आपने मेरी मानव-जातिके प्रति की गई सेवाओंका विशेष रूपसे उल्लेख किया है। मेरे लिए मानव या प्राणिमात्रकी सेवा धर्म बन गई है और मैं इस धर्म और राजनीतिमें अन्तर नहीं करता। मैं अवश्य ही राजनीतिसे सर्वथा पृथक्, पूर्ण सेवाके जीवनकी कल्पना नहीं कर सकता। मैं अपने प्रयोगोंसे यह साबित करनेका<noinclude></noinclude>
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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/९०
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Manisha yadav12
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/* अशोधित */ '________________ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय प्रयत्न कर रहा हूँ कि राजनीति धर्मके बिना एक भयानक मनोविनोद या क्रीड़ा-मात्र है, जिसका परिणाम उसमें रत व्यक्तियों और राष्ट्रोंके लिए...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
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text/x-wiki
<noinclude><pagequality level="1" user="Manisha yadav12" /></noinclude>________________
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय प्रयत्न कर रहा हूँ कि राजनीति धर्मके बिना एक भयानक मनोविनोद या क्रीड़ा-मात्र है, जिसका परिणाम उसमें रत व्यक्तियों और राष्ट्रोंके लिए अहितकर ही होता है।
मगर मैं देखता हूँ कि अपने राजनीतिक जीवनमें ऊपर बताये गये धर्मको शामिल करनेके मेरे प्रयत्नसे मेरे कुछ परम मित्रों और साथियोंको डर लग रहा है। मेरे लिए एक ओर कुआँ और दूसरी ओर खाई है। जहाँ ये मित्र राजनीतिको धर्मके रूपमें चलानेके मेरे प्रयत्नसे डरते हैं वहाँ एक दुसरा दल चाहता है कि अपना कार्यक्षेत्र उन्हीं कामोंतक सीमित रखें जिन्हें वह सामाजिक सेवा समझता है, किन्तु यदि मुझे अपने उद्देश्यपर विश्वास है तो मुझे अपने मार्गपर अडिग रहना चाहिए। मेरा विश्वास है कि वह समय तेजीसे पास आ रहा है जब राजनीतिज्ञ मानवताके धर्मसे डरना बन्द कर देंगे और मानव-हितवादियोंको राजनीतिक जीवन में स्थान मिलेगा जो पूर्ण सेवाके लिए अनिवार्य है । मैं इसी कारण तो सारे भारतका आह्वान कर रहा हूँ कि वह चरखे और खद्दरके सन्देशको अपनाये और हिन्दू, मुसलमान, पारसी, क्रिस्तान, यहूदी आदि जातियोंमें, जो व्यर्थ ही यह सोचती हैं कि एकका ईश्वर दूसरेके ईश्वरसे अलग है, हादिक एकता स्थापित करें। मैं इसी कारण यह भी अनुभव करता हूँ कि हिन्दुओंका जन्मके कारण किसी स्त्री या पुरुषको अछूत मानना अधर्म है। ये कार्य मेरी समझमें जितने उच्च प्रकारके मानव-हितके कार्य हैं उतने ही राजनीतिक कार्य भी है। अत: आपके मानपत्रके लिए धन्यवाद देनेका सबसे बढ़िया तरीका यह है कि मैं आपका आह्वान करूँ कि आप इस काममें मेरा साथ दें और मेरी सहायता करें और भारतमें अपना प्रधान निगम कहलाना सार्थक करें। [अंग्रेजीसे] बॉम्बे क्रॉनिकल, ३०-८-१९२४
३७. पत्र : मोतीलाल नेहरूको
बम्बई
३० अगस्त,१९२४ प्रिय मोतीलालजी,
श्रीमती नायडूने मेरे नाम लिखा आपका पत्र' मुझे कल दिया। मूल पत्र अबतक साबरमती पहुँच गया होगा। पिछले दोनों पत्रोंमें मैं पूरा, अर्थात् जितना कर सकता था उतना, समर्पण कर चुका हूँ।... - इसलिए अब तो आप मुझसे लगभग अपनी ही शर्तोपर अपनी बात मनवा सकते हैं। “लगभग" इसलिए कहा कि कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें मैं अपने जीवन और दुनियाके सभी सम्बन्धोंसे ज्यादा महत्त्व देता हूँ। लेकिन अगर आप मुझे कुछ चीजें
१.२५ अगस्त, १९२४ का । २.देखिए खण्ड २४, पृष्ठ ५४१-४२ तथा ५८९-९० ।
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