विकिसूक्ति hiwikiquote https://hi.wikiquote.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%96%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0 MediaWiki 1.39.0-wmf.26 first-letter मीडिया विशेष वार्ता सदस्य सदस्य वार्ता विकिसूक्ति विकिसूक्ति वार्ता चित्र चित्र वार्ता मीडियाविकि मीडियाविकि वार्ता साँचा साँचा वार्ता सहायता सहायता वार्ता श्रेणी श्रेणी वार्ता TimedText TimedText talk Module Module talk गैजेट गैजेट वार्ता गैजेट परिभाषा गैजेट परिभाषा वार्ता मोहनदास करमचंद गांधी 0 1653 23963 23242 2022-08-29T03:26:46Z अनुनाद सिंह 658 /* बाह्य सूत्र */ wikitext text/x-wiki [[चित्र:Portrait Gandhi.jpg|अंगूठाकार|मोहनदास करमचंद गांधी]] '''मोहनदास करमचन्द गांधी''' (2 अक्टूबर 1869 - 30 जनवरी 1948) भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। ==महात्मा गांधी पर महापुरुषों के विचार== * भविष्य की पीढ़ियों को इस बात पर विश्वास करने में मुश्किल होगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति भी कभी धरती पर आया था। --अल्बर्ट आइंस्टीन * गांधी हमेशा मुझे एक प्रेरणा-पुंज की तरह रास्ता दिखाते रहे। -- नेल्सन मान्डेला * ईसा मसीह ने हमें लक्ष्य दिए और महात्मा गांधी ने हमें उन्हें प्राप्त करने के तरीके बताए। -- मार्टिन लूथर किंग जूनियर ==महात्मा गांधी की सूक्तियाँ== * वे ईसाई हैं, इससे क्या हिन्दुस्तानी नहीं रह और परदेशी बन गये ? * कितने ही नवयुवक शुरु में निर्दोष होते हुए भी झूठी शरम के कारण बुराई में फँस जाते होगे । * उस आस्था का कोई मूल्य नहीं जिसे आचरण में न लाया जा सके। -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ १८०) * अहिंसा एक विज्ञान है। विज्ञान के शब्दकोश में 'असफलता' का कोई स्थान नहीं। -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ ८१) * सार्थक कला रचनाकार की प्रसन्नता, समाधान और पवित्रता की गवाह होती है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ५६) * एक सच्चे कलाकार के लिए सिर्फ वही चेहरा सुंदर होता है जो बाहरी दिखावे से परे, आत्मा की सुंदरता से चमकता है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १५९) * मनुष्य अक्सर सत्य का सौंदर्य देखने में असफल रहता है, सामान्य व्यक्ति इससे दूर भागता है और इसमें निहित सौंदर्य के प्रति अंधा बना रहता है। -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ १८०) * चरित्र और शैक्षणिक सुविधाएँ ही वह पूँजी है जो मातापिता अपने संतान में समान रूप से स्थानांतरित कर सकते हैं। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३६७) * विश्व के सारे महान धर्म मानवजाति की समानता, भाईचारे और सहिष्णुता का संदेश देते हैं। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २५७) * अधिकारों की प्राप्ति का मूल स्रोत कर्तव्य है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३६७) * सच्ची अहिंसा मृत्युशैया पर भी मुस्कराती रहेगी। 'अहिंसा' ही वह एकमात्र शक्ति है जिससे हम शत्रु को अपना मित्र बना सकते हैं और उसके प्रेमपात्र बन सकते हैं- -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ २४३) * अधभूखे राष्ट्र के पास न कोई धर्म, न कोई कला और न ही कोई संगठन हो सकता है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २५१) * नि:शस्त्र अहिंसा की शक्ति किसी भी परिस्थिति में सशस्त्र शक्ति से सर्वश्रेष्ठ होगी। -- (महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ २५२) * आत्मरक्षा हेतु मारने की शक्ति से बढ़कर मरने की हिम्मत होनी चाहिए। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ३) * जब भी मैं सूर्यास्त की अद्भुत लालिमा और चंद्रमा के सौंदर्य को निहारता हूँ तो मेरा हृदय सृजनकर्ता के प्रति श्रद्धा से भर उठता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३०२) * वीरतापूर्वक सम्मान के साथ मरने की कला के लिए किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती। उसके लिए परमात्मा में जीवंत श्रद्धा काफी है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३०२) * क्रूरता का उत्तर क्रूरता से देने का अर्थ अपने नैतिक व बौद्धिक पतन को स्वीकार करना है। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ ३९९) * एकमात्र वस्तु जो हमें पशु से भिन्न करती है वह है सही और गलत के मध्य भेद करने की क्षमता जो हम सभी में समान रूप से विद्यमान है। -- (महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ १५८) * आपकी समस्त विद्वत्ता, आपका शेक्सपियर और वड्सवर्थ का संपूर्ण अध्ययन निरर्थक है यदि आप अपने चरित्र का निर्माण व विचारों क्रियाओं में सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३७६) * वक्ता के विकास और चरित्र का वास्तविक प्रतिबिंब 'भाषा' है। -- (एविल रोट बाइ द इंग्लिश मिडीयम, १९५८ पृष्ठ १८) * स्वच्छता, पवित्रता और आत्म-सम्मान से जीने के लिए धन की आवश्यकता नहीं होती। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३५६) * निर्मल चरित्र एवं आत्मिक पवित्रता वाला व्यक्तित्व सहजता से लोगों का विश्वास अर्जित करता है और स्वत : अपने आस पास के वातावरण को शुद्ध कर देता है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ५७) * जीवन में स्थिरता, शांति और विश्वसनीयता की स्थापना का एकमात्र साधन भक्ति है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ४३) * सुखद जीवन का भेद त्याग पर आधारित है। त्याग ही जीवन है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १९२) * अधिकार-प्राप्ति का उचित माध्यम कर्तव्यों का निर्वाह है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १७९) * उफनते तूफान को मात देना है तो अधिक जोखिम उठाते हुए हमें पूरी शक्ति के साथ आगे बढना होगा। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २८६) * रोम का पतन उसका विनाश होने से बहुत पहले ही हो चुका था। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३४९) * गुलाब को उपदेश देने की आवश्यकता नहीं होती। वह तो केवल अपनी खुशबू बिखेरता है। उसकी खुशबू ही उसका संदेश है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ७२) * जहां तक मेरी दृष्टि जाती है मैं देखता हूं कि परमाणु शक्ति ने सदियों से मानवता को संजोये रखने वाली कोमल भावना को नष्ट कर दिया है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ , पृष्ठ १) * मेरे विचारानुसार गीता का उद्देश्य आत्म-ज्ञान की प्राप्ति का सर्वोत्तम मार्ग बताना है। -- (द मैसेज ऑफ द गीता, १९५९, पृष्ठ ४) * गीता में उल्लिखित भक्ति, कर्म और प्रेम के मार्ग में मानव द्वारा मानव के तिरस्कार के लिए कोई स्थान नहीं है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २७८) * मैं यह अनुभव करता हूं कि गीता हमें यह सिखाती है कि हम जिसका पालन अपने दैनिक जीवन में नहीं करते हैं, उसे धर्म नहीं कहा जा सकता है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३११) * हजारों लोगों द्वारा कुछ सैकडों की हत्या करना बहादुरी नहीं है। यह कायरता से भी बदतर है। यह किसी भी राष्ट्रवाद और धर्म के विरुद्ध है। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ २५२) * साहस कोई शारीरिक विशेषता न होकर आत्मिक विशेषता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ६१) * संपूर्ण विश्व का इतिहास उन व्यक्तियों के उदाहरणों से भरा पडा है जो अपने आत्म-विश्वास, साहस तथा दृढता की शक्ति से नेतृत्व के शिखर पर पहुंचे हैं। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २३) * हृदय में क्रोध, लालसा व इसी तरह की -----भावनाओं को रखना, सच्ची अस्पृश्यता है। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २३०) * मेरी अस्पृश्यता के विरोध की लडाई, मानवता में छिपी अशुद्धता से लडाई है। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ १६८) * सच्चा व्यक्तित्व अकेले ही सत्य तक पहुंच सकता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २४८) * शांति का मार्ग ही सत्य का मार्ग है। शांति की अपेक्षा सत्य अत्यधिक महत्वपूर्ण है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १५३) * हमारा जीवन सत्य का एक लंबा अनुसंधान है और इसकी पूर्णता के लिए आत्मा की शांति आवश्यक है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ६१) * यदि समाजवाद का अर्थ शत्रु के प्रति मित्रता का भाव रखना है तो मुझे एक सच्चा समाजवादी समझा जाना चाहिए। -- (महात्मा, भाग ८ के पृष्ठ ३७) * आत्मा की शक्ति संपूर्ण विश्व के हथियारों को परास्त करने की क्षमता रखती है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १२१) * किसी भी स्वाभिमानी व्यक्ति के लिए सोने की बेडियां, लोहे की बेडियों से कम कठोर नहीं होगी। चुभन धातु में नहीं वरन् बेडियों में होती है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३१३) * ईश्वर इतना निर्दयी व क्रूर नहीं है जो पुरुष-पुरुष और स्त्री-स्त्री के मध्य ऊंच-नीच का भेद करे। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २३४) * नारी को अबला कहना अपमानजनक है। यह पुरुषों का नारी के प्रति अन्याय है। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ३३) * गति जीवन का अंत नहीं हैं। सही अथों में मनुष्य अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए जीवित रहता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ४१७) * जहां प्रेम है, वही जीवन है। ईष्र्या-द्वेष विनाश की ओर ले जाते हैं। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, ए तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ४१७) * यदि अंधकार से प्रकाश उत्पन्न हो सकता है तो द्वेष भी प्रेम में परिवर्तित हो सकता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ४१७) * प्रेम और एकाधिकार एक साथ नहीं हो सकता है। -- (महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ ११) * प्रतिज्ञा के बिना जीवन उसी तरह है जैसे लंगर के बिना नाव या रेत पर बना महल। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २६४) * यदि आप न्याय के लिए लड रहे हैं, तो ईश्वर सदैव आपके साथ है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २०६) * मनुष्य अपनी तुच्छ वाणी से केवल ईश्वर का वर्णन कर सकता है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९९९ पृष्ठ ४५) * यदि आपको अपने उद्देश्य और साधन तथा ईश्वर में आस्था है तो सूर्य की तपिश भी शीतलता प्रदान करेगी। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १८२) * युद्धबंदी के लिए प्रयत्नरत् इस विश्व में उन राष्ट्रों के लिए कोई स्थान नहीं है जो दूसरे राष्ट्रों का शोषण कर उन पर वर्चस्व स्थापित करने में लगे हैं। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ २) * जिम्मेदारी युवाओं को मृदु व संयमी बनाती है ताकि वे अपने दायित्त्वों का निर्वाह करने के लिए तैयार हो सकें। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३७१) * विश्व को सदैव मूर्ख नहीं बनाया जा सकता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३३) * बुद्ध ने अपने समस्त भौतिक सुखों का त्याग किया क्योंकि वे संपूर्ण विश्व के साथ यह खुशी बांटना चाहते थे जो मात्र सत्य की खोज में कष्ट भोगने तथा बलिदान देने वालों को ही प्राप्त होती है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २९५) * हम धर्म के नाम पर गौ-रक्षा की दुहाई देते हैं किन्तु बाल-विधवा के रूप में मौजूद उस मानवीय गाय की सुरक्षा से इंकार कर देते हैं। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २२७) * अपने कर्तव्यों को जानने व उनका निर्वाह करने वाली स्त्री ही अपनी गौरवपूर्ण मर्यादा को पहचान सकती है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९४) * स्त्री का अंतर्ज्ञान पुरुष के श्रेष्ठ ज्ञानी होने की घमंडपूर्ण धारणा से अधिक यथार्थ है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ५१) * जो व्यक्ति अहिंसा में विश्वास करता है और ईश्वर की सत्ता में आस्था रखता है वह कभी भी पराजय स्वीकार नहीं करता। -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ १६) * समुद्र जलराशियों का समूह है। प्रत्येक बूंद का अपना अस्तित्व है तथापि वे अनेकता में एकता के द्योतक हैं। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ १४७) * पीडा द्वारा तर्क मजबूत होता है और पीडा ही व्यक्ति की अंतर्दृष्टि खोल देती है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १८२) * किसी भी विश्वविद्यालय के लिए वैभवपूर्ण इमारत तथा सोने-चांदी के खजाने की आवश्यकता नहीं होती। इन सबसे अधिक जनमत के बौद्धिक ज्ञान-भंडार की आवश्यकता होती है। -- (महात्मा, भाग ८ के पृष्ठ १६५) * विश्वविद्यालय का स्थान सर्वोच्च है। किसी भी वैभवशाली इमारत का अस्तित्व तभी संभव है जब उसकी नींव ठोस हो। -- (एविल रोट बाइ द इंग्लिश मीडीयम, १९५८ पृष्ठ २७) * मेरे विचारानुसार मैं निरंतर विकास कर रहा हूं। मुझे बदलती परिस्थितियों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना आ गया है तथापि मैं भीतर से अपरिवर्तित ही हूं। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ २४) * ब्रह्मचर्य क्या है ? यह जीवन का एक ऐसा मार्ग है जो हमें परमेश्वर की ओर अग्रसर करता है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ २४) * प्रत्येक भौतिक आपदा के पीछे एक दैवी उद्देश्य विद्यमान होता है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ २४) * सत्याग्रह और चरखे का घनिष्ठ संबंध है तथा इस अवधारणा को जितनी अधिक चुनौतियां दी जा रही हैं इससे मेरा विश्वास और अधिक दृढ होता जा रहा है। -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ २६४) * हमें बच्चों को ऐसी शिक्षा नहीं देनी चाहिए जिससे वे श्रम का तिरस्कार करें। -- (एविल रोट बाइ द इंग्लिश मीडीयम, १९५८ २०) * सभ्यता का सच्चा अर्थ अपनी इच्छाओं की अभिवृद्धि न कर उनका स्वेच्छा से परित्याग करना है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १८९) * अंतत : अत्याचार का परिणाम और कुछ नहीं केवल अव्यवस्था ही होती है। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ १०२) * हमारा समाजवाद अथवा साम्यवाद अहिंसा पर आधारित होना चाहिए जिसमें मालिक मजदूर एवं जमींदार किसान के मध्य परस्पर सद्भावपूर्ण सहयोग हो। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २५५) * किसी भी समझौते की अनिवार्य शर्त यही है कि वह अपमानजनक तथा कष्टप्रद न हो। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ६७) * यदि शक्ति का तात्पर्य नैतिक दृढता से है तो स्त्री पुरुषों से अधिक श्रेष्ठ है। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ३) * स्त्री पुरुष की सहचारिणी है जिसे समान मानसिक सामथ्र्य प्राप्त है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९२) * जब कोई युवक विवाह के लिए दहेज की शर्त रखता है तब वह न केवल अपनी शिक्षा और अपने देश को बदनाम करता है बल्कि स्त्री जाति का भी अपमान करता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९८) * धर्म के नाम पर हम उन तीन लाख बाल-विधवाओं पर वैधव्य थोप रहे हैं जिन्हें विवाह का अर्थ भी ज्ञात नहीं है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २२७) * स्त्री जीवन के समस्त पवित्र एवं धार्मिक धरोहर की मुख्य संरक्षिका है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९३) * महाभारत के रचयिता ने भौतिक युद्ध की अनिवार्यता का नहीं वरन् उसकी निरर्थकता का प्रतिपादन किया है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ९७) * स्वामी की आज्ञा का अनिवार्य रूप से पालन करना परतंत्रता है परंतु पिता की आज्ञा का स्वेच्छा से पालन करना पुत्रत्व का गौरव प्रदान करती है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २२७) * भारतीयों के एक वर्ग को दूसरेे के प्रति शत्रुता की भावना से देखने के लिए प्रेरित करने वाली मनोवृत्ति आत्मघाती है। यह मनोवृत्ति परतंत्रता को चिरस्थायी बनानेे में ही उपयुक्त होगी। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ ३५२) * स्वतंत्रता एक जन्म की भांति है। जब तक हम पूर्णत : स्वतंत्र नहीं हो जाते तब तक हम परतंत्र ही रहेंगे। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३११) * आधुनिक सभ्यता ने हमें रात को दिन में और सुनहरी खामोशी को पीतल के कोलाहल और शोरगुल में परिवर्तित करना सिखाया है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ६०) * मनुष्य तभी विजयी होगा जब वह जीवन-संघर्ष के बजाय परस्पर-सेवा हेतु संघर्ष करेगा। -- (महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ ३६) * अयोग्य व्यक्ति को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी दूसरे अयोग्य व्यक्ति के विषय में निर्णय दे। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २२३) * धर्म के बिना व्यक्ति पतवार बिना नाव के समान है। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २२३) * सादगी ही सार्वभौमिकता का सार है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ८२) * अहिंसा पर आधारित स्वराज्य में, व्यक्ति को अपने अधिकारों को जानना उतना आवश्यक नहीं है जितना कि अपने कर्तव्यों का ज्ञान होना। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९२) * मजदूर के दो हाथ जो अर्जित कर सकते हैं वह मालिक अपनी पूरी संपत्ति द्वारा भी प्राप्त नहीं कर सकता। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ ३३) * अपनी भूलों को स्वीकारना उस झाडू के समान है जो गंदगी को साफ कर उस स्थान को पहले से अधिक स्वच्छ कर देती है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ८४) * पराजय के क्षणों में ही नायकों का निर्माण होता है। अंत : सफलता का सही अर्थ महान असफलताओं की श्रृंखला है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ८४) * थोडा सा अभ्यास बहुत सारे उपदेशों से बेहतर है। * पूर्ण धारणा के साथ बोला गया "नहीं" सिर्फ दूसरों को खुश करने या समस्या से छुटकारा पाने के लिए बोले गए “हाँ” से बेहतर है। * पूंजी अपने-आप में बुरी नहीं है, उसके गलत उपयोग में ही बुराई है। किसी ना किसी रूप में पूंजी की आवश्यकता हमेशा रहेगी। * मैं मरने के लिए तैयार हूँ, पर ऐसी कोई वज़ह नहीं है जिसके लिए मैं मारने को तैयार हूँ। * जब मैं निराश होता हूँ, मैं याद कर लेता हूँ कि समस्त इतिहास के दौरान सत्य और प्रेम के मार्ग की ही हमेशा विजय होती है। कितने ही तानाशाह और हत्यारे हुए हैं, और कुछ समय के लिए वो अजेय लग सकते हैं, लेकिन अंत में उनका पतन होता है। इसके बारे में सोचो- हमेशा। * उपदेश करने से पहले खुद के गुण देखने चाहिए। * सुखद जीवन का भेद त्याग पर आधारित है। त्याग ही जीवन है। * जब तक गलती करने की स्वतंत्रता ना हो तब तक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है। ==इन्हें भी देखें== *[[महात्मा गांधी के विचार]] ==बाह्य सूत्र== {{कॉमन्स श्रेणी|Mohandas K. Gandhi|{{PAGENAME}}}} {{wikipedia}} * [http://www.hindi.mkgandhi.org/efg.htm सुविचार (गांधीजी के शब्दों में)] *[https://www.gyanipandit.com/mahatma-gandhi-quotes-in-hindi-with-image/ (महात्मा गांधी के सर्वश्रेष्ठ अनमोल विचार)] *[https://www.activehindi.com/2020/06/mahatma-gandhi-biography-in-hindi.html (महात्मा गांधी की जीवनी )] [[श्रेणी:राजनेता]] qfys5jrc4vlxrol87soq64godxjeyc3 23964 23963 2022-08-29T03:27:26Z अनुनाद सिंह 658 /* बाह्य सूत्र */ wikitext text/x-wiki [[चित्र:Portrait Gandhi.jpg|अंगूठाकार|मोहनदास करमचंद गांधी]] '''मोहनदास करमचन्द गांधी''' (2 अक्टूबर 1869 - 30 जनवरी 1948) भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। ==महात्मा गांधी पर महापुरुषों के विचार== * भविष्य की पीढ़ियों को इस बात पर विश्वास करने में मुश्किल होगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति भी कभी धरती पर आया था। --अल्बर्ट आइंस्टीन * गांधी हमेशा मुझे एक प्रेरणा-पुंज की तरह रास्ता दिखाते रहे। -- नेल्सन मान्डेला * ईसा मसीह ने हमें लक्ष्य दिए और महात्मा गांधी ने हमें उन्हें प्राप्त करने के तरीके बताए। -- मार्टिन लूथर किंग जूनियर ==महात्मा गांधी की सूक्तियाँ== * वे ईसाई हैं, इससे क्या हिन्दुस्तानी नहीं रह और परदेशी बन गये ? * कितने ही नवयुवक शुरु में निर्दोष होते हुए भी झूठी शरम के कारण बुराई में फँस जाते होगे । * उस आस्था का कोई मूल्य नहीं जिसे आचरण में न लाया जा सके। -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ १८०) * अहिंसा एक विज्ञान है। विज्ञान के शब्दकोश में 'असफलता' का कोई स्थान नहीं। -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ ८१) * सार्थक कला रचनाकार की प्रसन्नता, समाधान और पवित्रता की गवाह होती है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ५६) * एक सच्चे कलाकार के लिए सिर्फ वही चेहरा सुंदर होता है जो बाहरी दिखावे से परे, आत्मा की सुंदरता से चमकता है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १५९) * मनुष्य अक्सर सत्य का सौंदर्य देखने में असफल रहता है, सामान्य व्यक्ति इससे दूर भागता है और इसमें निहित सौंदर्य के प्रति अंधा बना रहता है। -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ १८०) * चरित्र और शैक्षणिक सुविधाएँ ही वह पूँजी है जो मातापिता अपने संतान में समान रूप से स्थानांतरित कर सकते हैं। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३६७) * विश्व के सारे महान धर्म मानवजाति की समानता, भाईचारे और सहिष्णुता का संदेश देते हैं। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २५७) * अधिकारों की प्राप्ति का मूल स्रोत कर्तव्य है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३६७) * सच्ची अहिंसा मृत्युशैया पर भी मुस्कराती रहेगी। 'अहिंसा' ही वह एकमात्र शक्ति है जिससे हम शत्रु को अपना मित्र बना सकते हैं और उसके प्रेमपात्र बन सकते हैं- -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ २४३) * अधभूखे राष्ट्र के पास न कोई धर्म, न कोई कला और न ही कोई संगठन हो सकता है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २५१) * नि:शस्त्र अहिंसा की शक्ति किसी भी परिस्थिति में सशस्त्र शक्ति से सर्वश्रेष्ठ होगी। -- (महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ २५२) * आत्मरक्षा हेतु मारने की शक्ति से बढ़कर मरने की हिम्मत होनी चाहिए। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ३) * जब भी मैं सूर्यास्त की अद्भुत लालिमा और चंद्रमा के सौंदर्य को निहारता हूँ तो मेरा हृदय सृजनकर्ता के प्रति श्रद्धा से भर उठता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३०२) * वीरतापूर्वक सम्मान के साथ मरने की कला के लिए किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती। उसके लिए परमात्मा में जीवंत श्रद्धा काफी है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३०२) * क्रूरता का उत्तर क्रूरता से देने का अर्थ अपने नैतिक व बौद्धिक पतन को स्वीकार करना है। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ ३९९) * एकमात्र वस्तु जो हमें पशु से भिन्न करती है वह है सही और गलत के मध्य भेद करने की क्षमता जो हम सभी में समान रूप से विद्यमान है। -- (महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ १५८) * आपकी समस्त विद्वत्ता, आपका शेक्सपियर और वड्सवर्थ का संपूर्ण अध्ययन निरर्थक है यदि आप अपने चरित्र का निर्माण व विचारों क्रियाओं में सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३७६) * वक्ता के विकास और चरित्र का वास्तविक प्रतिबिंब 'भाषा' है। -- (एविल रोट बाइ द इंग्लिश मिडीयम, १९५८ पृष्ठ १८) * स्वच्छता, पवित्रता और आत्म-सम्मान से जीने के लिए धन की आवश्यकता नहीं होती। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३५६) * निर्मल चरित्र एवं आत्मिक पवित्रता वाला व्यक्तित्व सहजता से लोगों का विश्वास अर्जित करता है और स्वत : अपने आस पास के वातावरण को शुद्ध कर देता है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ५७) * जीवन में स्थिरता, शांति और विश्वसनीयता की स्थापना का एकमात्र साधन भक्ति है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ४३) * सुखद जीवन का भेद त्याग पर आधारित है। त्याग ही जीवन है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १९२) * अधिकार-प्राप्ति का उचित माध्यम कर्तव्यों का निर्वाह है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १७९) * उफनते तूफान को मात देना है तो अधिक जोखिम उठाते हुए हमें पूरी शक्ति के साथ आगे बढना होगा। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २८६) * रोम का पतन उसका विनाश होने से बहुत पहले ही हो चुका था। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३४९) * गुलाब को उपदेश देने की आवश्यकता नहीं होती। वह तो केवल अपनी खुशबू बिखेरता है। उसकी खुशबू ही उसका संदेश है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ७२) * जहां तक मेरी दृष्टि जाती है मैं देखता हूं कि परमाणु शक्ति ने सदियों से मानवता को संजोये रखने वाली कोमल भावना को नष्ट कर दिया है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ , पृष्ठ १) * मेरे विचारानुसार गीता का उद्देश्य आत्म-ज्ञान की प्राप्ति का सर्वोत्तम मार्ग बताना है। -- (द मैसेज ऑफ द गीता, १९५९, पृष्ठ ४) * गीता में उल्लिखित भक्ति, कर्म और प्रेम के मार्ग में मानव द्वारा मानव के तिरस्कार के लिए कोई स्थान नहीं है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २७८) * मैं यह अनुभव करता हूं कि गीता हमें यह सिखाती है कि हम जिसका पालन अपने दैनिक जीवन में नहीं करते हैं, उसे धर्म नहीं कहा जा सकता है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३११) * हजारों लोगों द्वारा कुछ सैकडों की हत्या करना बहादुरी नहीं है। यह कायरता से भी बदतर है। यह किसी भी राष्ट्रवाद और धर्म के विरुद्ध है। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ २५२) * साहस कोई शारीरिक विशेषता न होकर आत्मिक विशेषता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ६१) * संपूर्ण विश्व का इतिहास उन व्यक्तियों के उदाहरणों से भरा पडा है जो अपने आत्म-विश्वास, साहस तथा दृढता की शक्ति से नेतृत्व के शिखर पर पहुंचे हैं। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २३) * हृदय में क्रोध, लालसा व इसी तरह की -----भावनाओं को रखना, सच्ची अस्पृश्यता है। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २३०) * मेरी अस्पृश्यता के विरोध की लडाई, मानवता में छिपी अशुद्धता से लडाई है। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ १६८) * सच्चा व्यक्तित्व अकेले ही सत्य तक पहुंच सकता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २४८) * शांति का मार्ग ही सत्य का मार्ग है। शांति की अपेक्षा सत्य अत्यधिक महत्वपूर्ण है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १५३) * हमारा जीवन सत्य का एक लंबा अनुसंधान है और इसकी पूर्णता के लिए आत्मा की शांति आवश्यक है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ६१) * यदि समाजवाद का अर्थ शत्रु के प्रति मित्रता का भाव रखना है तो मुझे एक सच्चा समाजवादी समझा जाना चाहिए। -- (महात्मा, भाग ८ के पृष्ठ ३७) * आत्मा की शक्ति संपूर्ण विश्व के हथियारों को परास्त करने की क्षमता रखती है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १२१) * किसी भी स्वाभिमानी व्यक्ति के लिए सोने की बेडियां, लोहे की बेडियों से कम कठोर नहीं होगी। चुभन धातु में नहीं वरन् बेडियों में होती है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३१३) * ईश्वर इतना निर्दयी व क्रूर नहीं है जो पुरुष-पुरुष और स्त्री-स्त्री के मध्य ऊंच-नीच का भेद करे। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २३४) * नारी को अबला कहना अपमानजनक है। यह पुरुषों का नारी के प्रति अन्याय है। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ३३) * गति जीवन का अंत नहीं हैं। सही अथों में मनुष्य अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए जीवित रहता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ४१७) * जहां प्रेम है, वही जीवन है। ईष्र्या-द्वेष विनाश की ओर ले जाते हैं। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, ए तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ४१७) * यदि अंधकार से प्रकाश उत्पन्न हो सकता है तो द्वेष भी प्रेम में परिवर्तित हो सकता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ४१७) * प्रेम और एकाधिकार एक साथ नहीं हो सकता है। -- (महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ ११) * प्रतिज्ञा के बिना जीवन उसी तरह है जैसे लंगर के बिना नाव या रेत पर बना महल। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २६४) * यदि आप न्याय के लिए लड रहे हैं, तो ईश्वर सदैव आपके साथ है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २०६) * मनुष्य अपनी तुच्छ वाणी से केवल ईश्वर का वर्णन कर सकता है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९९९ पृष्ठ ४५) * यदि आपको अपने उद्देश्य और साधन तथा ईश्वर में आस्था है तो सूर्य की तपिश भी शीतलता प्रदान करेगी। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १८२) * युद्धबंदी के लिए प्रयत्नरत् इस विश्व में उन राष्ट्रों के लिए कोई स्थान नहीं है जो दूसरे राष्ट्रों का शोषण कर उन पर वर्चस्व स्थापित करने में लगे हैं। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ २) * जिम्मेदारी युवाओं को मृदु व संयमी बनाती है ताकि वे अपने दायित्त्वों का निर्वाह करने के लिए तैयार हो सकें। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३७१) * विश्व को सदैव मूर्ख नहीं बनाया जा सकता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३३) * बुद्ध ने अपने समस्त भौतिक सुखों का त्याग किया क्योंकि वे संपूर्ण विश्व के साथ यह खुशी बांटना चाहते थे जो मात्र सत्य की खोज में कष्ट भोगने तथा बलिदान देने वालों को ही प्राप्त होती है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २९५) * हम धर्म के नाम पर गौ-रक्षा की दुहाई देते हैं किन्तु बाल-विधवा के रूप में मौजूद उस मानवीय गाय की सुरक्षा से इंकार कर देते हैं। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २२७) * अपने कर्तव्यों को जानने व उनका निर्वाह करने वाली स्त्री ही अपनी गौरवपूर्ण मर्यादा को पहचान सकती है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९४) * स्त्री का अंतर्ज्ञान पुरुष के श्रेष्ठ ज्ञानी होने की घमंडपूर्ण धारणा से अधिक यथार्थ है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ५१) * जो व्यक्ति अहिंसा में विश्वास करता है और ईश्वर की सत्ता में आस्था रखता है वह कभी भी पराजय स्वीकार नहीं करता। -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ १६) * समुद्र जलराशियों का समूह है। प्रत्येक बूंद का अपना अस्तित्व है तथापि वे अनेकता में एकता के द्योतक हैं। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ १४७) * पीडा द्वारा तर्क मजबूत होता है और पीडा ही व्यक्ति की अंतर्दृष्टि खोल देती है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १८२) * किसी भी विश्वविद्यालय के लिए वैभवपूर्ण इमारत तथा सोने-चांदी के खजाने की आवश्यकता नहीं होती। इन सबसे अधिक जनमत के बौद्धिक ज्ञान-भंडार की आवश्यकता होती है। -- (महात्मा, भाग ८ के पृष्ठ १६५) * विश्वविद्यालय का स्थान सर्वोच्च है। किसी भी वैभवशाली इमारत का अस्तित्व तभी संभव है जब उसकी नींव ठोस हो। -- (एविल रोट बाइ द इंग्लिश मीडीयम, १९५८ पृष्ठ २७) * मेरे विचारानुसार मैं निरंतर विकास कर रहा हूं। मुझे बदलती परिस्थितियों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना आ गया है तथापि मैं भीतर से अपरिवर्तित ही हूं। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ २४) * ब्रह्मचर्य क्या है ? यह जीवन का एक ऐसा मार्ग है जो हमें परमेश्वर की ओर अग्रसर करता है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ २४) * प्रत्येक भौतिक आपदा के पीछे एक दैवी उद्देश्य विद्यमान होता है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ २४) * सत्याग्रह और चरखे का घनिष्ठ संबंध है तथा इस अवधारणा को जितनी अधिक चुनौतियां दी जा रही हैं इससे मेरा विश्वास और अधिक दृढ होता जा रहा है। -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ २६४) * हमें बच्चों को ऐसी शिक्षा नहीं देनी चाहिए जिससे वे श्रम का तिरस्कार करें। -- (एविल रोट बाइ द इंग्लिश मीडीयम, १९५८ २०) * सभ्यता का सच्चा अर्थ अपनी इच्छाओं की अभिवृद्धि न कर उनका स्वेच्छा से परित्याग करना है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १८९) * अंतत : अत्याचार का परिणाम और कुछ नहीं केवल अव्यवस्था ही होती है। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ १०२) * हमारा समाजवाद अथवा साम्यवाद अहिंसा पर आधारित होना चाहिए जिसमें मालिक मजदूर एवं जमींदार किसान के मध्य परस्पर सद्भावपूर्ण सहयोग हो। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २५५) * किसी भी समझौते की अनिवार्य शर्त यही है कि वह अपमानजनक तथा कष्टप्रद न हो। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ६७) * यदि शक्ति का तात्पर्य नैतिक दृढता से है तो स्त्री पुरुषों से अधिक श्रेष्ठ है। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ३) * स्त्री पुरुष की सहचारिणी है जिसे समान मानसिक सामथ्र्य प्राप्त है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९२) * जब कोई युवक विवाह के लिए दहेज की शर्त रखता है तब वह न केवल अपनी शिक्षा और अपने देश को बदनाम करता है बल्कि स्त्री जाति का भी अपमान करता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९८) * धर्म के नाम पर हम उन तीन लाख बाल-विधवाओं पर वैधव्य थोप रहे हैं जिन्हें विवाह का अर्थ भी ज्ञात नहीं है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २२७) * स्त्री जीवन के समस्त पवित्र एवं धार्मिक धरोहर की मुख्य संरक्षिका है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९३) * महाभारत के रचयिता ने भौतिक युद्ध की अनिवार्यता का नहीं वरन् उसकी निरर्थकता का प्रतिपादन किया है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ९७) * स्वामी की आज्ञा का अनिवार्य रूप से पालन करना परतंत्रता है परंतु पिता की आज्ञा का स्वेच्छा से पालन करना पुत्रत्व का गौरव प्रदान करती है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २२७) * भारतीयों के एक वर्ग को दूसरेे के प्रति शत्रुता की भावना से देखने के लिए प्रेरित करने वाली मनोवृत्ति आत्मघाती है। यह मनोवृत्ति परतंत्रता को चिरस्थायी बनानेे में ही उपयुक्त होगी। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ ३५२) * स्वतंत्रता एक जन्म की भांति है। जब तक हम पूर्णत : स्वतंत्र नहीं हो जाते तब तक हम परतंत्र ही रहेंगे। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३११) * आधुनिक सभ्यता ने हमें रात को दिन में और सुनहरी खामोशी को पीतल के कोलाहल और शोरगुल में परिवर्तित करना सिखाया है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ६०) * मनुष्य तभी विजयी होगा जब वह जीवन-संघर्ष के बजाय परस्पर-सेवा हेतु संघर्ष करेगा। -- (महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ ३६) * अयोग्य व्यक्ति को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी दूसरे अयोग्य व्यक्ति के विषय में निर्णय दे। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २२३) * धर्म के बिना व्यक्ति पतवार बिना नाव के समान है। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २२३) * सादगी ही सार्वभौमिकता का सार है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ८२) * अहिंसा पर आधारित स्वराज्य में, व्यक्ति को अपने अधिकारों को जानना उतना आवश्यक नहीं है जितना कि अपने कर्तव्यों का ज्ञान होना। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९२) * मजदूर के दो हाथ जो अर्जित कर सकते हैं वह मालिक अपनी पूरी संपत्ति द्वारा भी प्राप्त नहीं कर सकता। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ ३३) * अपनी भूलों को स्वीकारना उस झाडू के समान है जो गंदगी को साफ कर उस स्थान को पहले से अधिक स्वच्छ कर देती है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ८४) * पराजय के क्षणों में ही नायकों का निर्माण होता है। अंत : सफलता का सही अर्थ महान असफलताओं की श्रृंखला है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ८४) * थोडा सा अभ्यास बहुत सारे उपदेशों से बेहतर है। * पूर्ण धारणा के साथ बोला गया "नहीं" सिर्फ दूसरों को खुश करने या समस्या से छुटकारा पाने के लिए बोले गए “हाँ” से बेहतर है। * पूंजी अपने-आप में बुरी नहीं है, उसके गलत उपयोग में ही बुराई है। किसी ना किसी रूप में पूंजी की आवश्यकता हमेशा रहेगी। * मैं मरने के लिए तैयार हूँ, पर ऐसी कोई वज़ह नहीं है जिसके लिए मैं मारने को तैयार हूँ। * जब मैं निराश होता हूँ, मैं याद कर लेता हूँ कि समस्त इतिहास के दौरान सत्य और प्रेम के मार्ग की ही हमेशा विजय होती है। कितने ही तानाशाह और हत्यारे हुए हैं, और कुछ समय के लिए वो अजेय लग सकते हैं, लेकिन अंत में उनका पतन होता है। इसके बारे में सोचो- हमेशा। * उपदेश करने से पहले खुद के गुण देखने चाहिए। * सुखद जीवन का भेद त्याग पर आधारित है। त्याग ही जीवन है। * जब तक गलती करने की स्वतंत्रता ना हो तब तक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है। ==इन्हें भी देखें== *[[महात्मा गांधी के विचार]] ==बाह्य सूत्र== {{कॉमन्स श्रेणी|Mohandas K. Gandhi|{{PAGENAME}}}} {{wikipedia}} * [http://www.hindi.mkgandhi.org/efg.htm सुविचार (गांधीजी के शब्दों में)] *[https://www.gyanipandit.com/mahatma-gandhi-quotes-in-hindi-with-image/ महात्मा गांधी के सर्वश्रेष्ठ अनमोल विचार] *[https://www.activehindi.com/2020/06/mahatma-gandhi-biography-in-hindi.html (महात्मा गांधी की जीवनी )] [[श्रेणी:राजनेता]] 7s5o9c021lauiqaf8fhpgiyfluwoh97 23965 23964 2022-08-29T03:28:17Z अनुनाद सिंह 658 /* बाह्य सूत्र */ wikitext text/x-wiki [[चित्र:Portrait Gandhi.jpg|अंगूठाकार|मोहनदास करमचंद गांधी]] '''मोहनदास करमचन्द गांधी''' (2 अक्टूबर 1869 - 30 जनवरी 1948) भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। वे सत्याग्रह (व्यापक सविनय अवज्ञा) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। ==महात्मा गांधी पर महापुरुषों के विचार== * भविष्य की पीढ़ियों को इस बात पर विश्वास करने में मुश्किल होगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति भी कभी धरती पर आया था। --अल्बर्ट आइंस्टीन * गांधी हमेशा मुझे एक प्रेरणा-पुंज की तरह रास्ता दिखाते रहे। -- नेल्सन मान्डेला * ईसा मसीह ने हमें लक्ष्य दिए और महात्मा गांधी ने हमें उन्हें प्राप्त करने के तरीके बताए। -- मार्टिन लूथर किंग जूनियर ==महात्मा गांधी की सूक्तियाँ== * वे ईसाई हैं, इससे क्या हिन्दुस्तानी नहीं रह और परदेशी बन गये ? * कितने ही नवयुवक शुरु में निर्दोष होते हुए भी झूठी शरम के कारण बुराई में फँस जाते होगे । * उस आस्था का कोई मूल्य नहीं जिसे आचरण में न लाया जा सके। -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ १८०) * अहिंसा एक विज्ञान है। विज्ञान के शब्दकोश में 'असफलता' का कोई स्थान नहीं। -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ ८१) * सार्थक कला रचनाकार की प्रसन्नता, समाधान और पवित्रता की गवाह होती है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ५६) * एक सच्चे कलाकार के लिए सिर्फ वही चेहरा सुंदर होता है जो बाहरी दिखावे से परे, आत्मा की सुंदरता से चमकता है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १५९) * मनुष्य अक्सर सत्य का सौंदर्य देखने में असफल रहता है, सामान्य व्यक्ति इससे दूर भागता है और इसमें निहित सौंदर्य के प्रति अंधा बना रहता है। -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ १८०) * चरित्र और शैक्षणिक सुविधाएँ ही वह पूँजी है जो मातापिता अपने संतान में समान रूप से स्थानांतरित कर सकते हैं। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३६७) * विश्व के सारे महान धर्म मानवजाति की समानता, भाईचारे और सहिष्णुता का संदेश देते हैं। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २५७) * अधिकारों की प्राप्ति का मूल स्रोत कर्तव्य है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३६७) * सच्ची अहिंसा मृत्युशैया पर भी मुस्कराती रहेगी। 'अहिंसा' ही वह एकमात्र शक्ति है जिससे हम शत्रु को अपना मित्र बना सकते हैं और उसके प्रेमपात्र बन सकते हैं- -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ २४३) * अधभूखे राष्ट्र के पास न कोई धर्म, न कोई कला और न ही कोई संगठन हो सकता है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २५१) * नि:शस्त्र अहिंसा की शक्ति किसी भी परिस्थिति में सशस्त्र शक्ति से सर्वश्रेष्ठ होगी। -- (महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ २५२) * आत्मरक्षा हेतु मारने की शक्ति से बढ़कर मरने की हिम्मत होनी चाहिए। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ३) * जब भी मैं सूर्यास्त की अद्भुत लालिमा और चंद्रमा के सौंदर्य को निहारता हूँ तो मेरा हृदय सृजनकर्ता के प्रति श्रद्धा से भर उठता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३०२) * वीरतापूर्वक सम्मान के साथ मरने की कला के लिए किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती। उसके लिए परमात्मा में जीवंत श्रद्धा काफी है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३०२) * क्रूरता का उत्तर क्रूरता से देने का अर्थ अपने नैतिक व बौद्धिक पतन को स्वीकार करना है। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ ३९९) * एकमात्र वस्तु जो हमें पशु से भिन्न करती है वह है सही और गलत के मध्य भेद करने की क्षमता जो हम सभी में समान रूप से विद्यमान है। -- (महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ १५८) * आपकी समस्त विद्वत्ता, आपका शेक्सपियर और वड्सवर्थ का संपूर्ण अध्ययन निरर्थक है यदि आप अपने चरित्र का निर्माण व विचारों क्रियाओं में सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाते। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३७६) * वक्ता के विकास और चरित्र का वास्तविक प्रतिबिंब 'भाषा' है। -- (एविल रोट बाइ द इंग्लिश मिडीयम, १९५८ पृष्ठ १८) * स्वच्छता, पवित्रता और आत्म-सम्मान से जीने के लिए धन की आवश्यकता नहीं होती। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३५६) * निर्मल चरित्र एवं आत्मिक पवित्रता वाला व्यक्तित्व सहजता से लोगों का विश्वास अर्जित करता है और स्वत : अपने आस पास के वातावरण को शुद्ध कर देता है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ५७) * जीवन में स्थिरता, शांति और विश्वसनीयता की स्थापना का एकमात्र साधन भक्ति है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ४३) * सुखद जीवन का भेद त्याग पर आधारित है। त्याग ही जीवन है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १९२) * अधिकार-प्राप्ति का उचित माध्यम कर्तव्यों का निर्वाह है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १७९) * उफनते तूफान को मात देना है तो अधिक जोखिम उठाते हुए हमें पूरी शक्ति के साथ आगे बढना होगा। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २८६) * रोम का पतन उसका विनाश होने से बहुत पहले ही हो चुका था। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३४९) * गुलाब को उपदेश देने की आवश्यकता नहीं होती। वह तो केवल अपनी खुशबू बिखेरता है। उसकी खुशबू ही उसका संदेश है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ७२) * जहां तक मेरी दृष्टि जाती है मैं देखता हूं कि परमाणु शक्ति ने सदियों से मानवता को संजोये रखने वाली कोमल भावना को नष्ट कर दिया है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ , पृष्ठ १) * मेरे विचारानुसार गीता का उद्देश्य आत्म-ज्ञान की प्राप्ति का सर्वोत्तम मार्ग बताना है। -- (द मैसेज ऑफ द गीता, १९५९, पृष्ठ ४) * गीता में उल्लिखित भक्ति, कर्म और प्रेम के मार्ग में मानव द्वारा मानव के तिरस्कार के लिए कोई स्थान नहीं है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २७८) * मैं यह अनुभव करता हूं कि गीता हमें यह सिखाती है कि हम जिसका पालन अपने दैनिक जीवन में नहीं करते हैं, उसे धर्म नहीं कहा जा सकता है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३११) * हजारों लोगों द्वारा कुछ सैकडों की हत्या करना बहादुरी नहीं है। यह कायरता से भी बदतर है। यह किसी भी राष्ट्रवाद और धर्म के विरुद्ध है। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ २५२) * साहस कोई शारीरिक विशेषता न होकर आत्मिक विशेषता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ६१) * संपूर्ण विश्व का इतिहास उन व्यक्तियों के उदाहरणों से भरा पडा है जो अपने आत्म-विश्वास, साहस तथा दृढता की शक्ति से नेतृत्व के शिखर पर पहुंचे हैं। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २३) * हृदय में क्रोध, लालसा व इसी तरह की -----भावनाओं को रखना, सच्ची अस्पृश्यता है। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २३०) * मेरी अस्पृश्यता के विरोध की लडाई, मानवता में छिपी अशुद्धता से लडाई है। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ १६८) * सच्चा व्यक्तित्व अकेले ही सत्य तक पहुंच सकता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २४८) * शांति का मार्ग ही सत्य का मार्ग है। शांति की अपेक्षा सत्य अत्यधिक महत्वपूर्ण है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १५३) * हमारा जीवन सत्य का एक लंबा अनुसंधान है और इसकी पूर्णता के लिए आत्मा की शांति आवश्यक है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ६१) * यदि समाजवाद का अर्थ शत्रु के प्रति मित्रता का भाव रखना है तो मुझे एक सच्चा समाजवादी समझा जाना चाहिए। -- (महात्मा, भाग ८ के पृष्ठ ३७) * आत्मा की शक्ति संपूर्ण विश्व के हथियारों को परास्त करने की क्षमता रखती है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १२१) * किसी भी स्वाभिमानी व्यक्ति के लिए सोने की बेडियां, लोहे की बेडियों से कम कठोर नहीं होगी। चुभन धातु में नहीं वरन् बेडियों में होती है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३१३) * ईश्वर इतना निर्दयी व क्रूर नहीं है जो पुरुष-पुरुष और स्त्री-स्त्री के मध्य ऊंच-नीच का भेद करे। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २३४) * नारी को अबला कहना अपमानजनक है। यह पुरुषों का नारी के प्रति अन्याय है। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ३३) * गति जीवन का अंत नहीं हैं। सही अथों में मनुष्य अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए जीवित रहता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ४१७) * जहां प्रेम है, वही जीवन है। ईष्र्या-द्वेष विनाश की ओर ले जाते हैं। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, ए तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ४१७) * यदि अंधकार से प्रकाश उत्पन्न हो सकता है तो द्वेष भी प्रेम में परिवर्तित हो सकता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ४१७) * प्रेम और एकाधिकार एक साथ नहीं हो सकता है। -- (महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ ११) * प्रतिज्ञा के बिना जीवन उसी तरह है जैसे लंगर के बिना नाव या रेत पर बना महल। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २६४) * यदि आप न्याय के लिए लड रहे हैं, तो ईश्वर सदैव आपके साथ है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २०६) * मनुष्य अपनी तुच्छ वाणी से केवल ईश्वर का वर्णन कर सकता है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९९९ पृष्ठ ४५) * यदि आपको अपने उद्देश्य और साधन तथा ईश्वर में आस्था है तो सूर्य की तपिश भी शीतलता प्रदान करेगी। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १८२) * युद्धबंदी के लिए प्रयत्नरत् इस विश्व में उन राष्ट्रों के लिए कोई स्थान नहीं है जो दूसरे राष्ट्रों का शोषण कर उन पर वर्चस्व स्थापित करने में लगे हैं। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ २) * जिम्मेदारी युवाओं को मृदु व संयमी बनाती है ताकि वे अपने दायित्त्वों का निर्वाह करने के लिए तैयार हो सकें। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ३७१) * विश्व को सदैव मूर्ख नहीं बनाया जा सकता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३३) * बुद्ध ने अपने समस्त भौतिक सुखों का त्याग किया क्योंकि वे संपूर्ण विश्व के साथ यह खुशी बांटना चाहते थे जो मात्र सत्य की खोज में कष्ट भोगने तथा बलिदान देने वालों को ही प्राप्त होती है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २९५) * हम धर्म के नाम पर गौ-रक्षा की दुहाई देते हैं किन्तु बाल-विधवा के रूप में मौजूद उस मानवीय गाय की सुरक्षा से इंकार कर देते हैं। महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २२७) * अपने कर्तव्यों को जानने व उनका निर्वाह करने वाली स्त्री ही अपनी गौरवपूर्ण मर्यादा को पहचान सकती है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९४) * स्त्री का अंतर्ज्ञान पुरुष के श्रेष्ठ ज्ञानी होने की घमंडपूर्ण धारणा से अधिक यथार्थ है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ५१) * जो व्यक्ति अहिंसा में विश्वास करता है और ईश्वर की सत्ता में आस्था रखता है वह कभी भी पराजय स्वीकार नहीं करता। -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ १६) * समुद्र जलराशियों का समूह है। प्रत्येक बूंद का अपना अस्तित्व है तथापि वे अनेकता में एकता के द्योतक हैं। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ १४७) * पीडा द्वारा तर्क मजबूत होता है और पीडा ही व्यक्ति की अंतर्दृष्टि खोल देती है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ १८२) * किसी भी विश्वविद्यालय के लिए वैभवपूर्ण इमारत तथा सोने-चांदी के खजाने की आवश्यकता नहीं होती। इन सबसे अधिक जनमत के बौद्धिक ज्ञान-भंडार की आवश्यकता होती है। -- (महात्मा, भाग ८ के पृष्ठ १६५) * विश्वविद्यालय का स्थान सर्वोच्च है। किसी भी वैभवशाली इमारत का अस्तित्व तभी संभव है जब उसकी नींव ठोस हो। -- (एविल रोट बाइ द इंग्लिश मीडीयम, १९५८ पृष्ठ २७) * मेरे विचारानुसार मैं निरंतर विकास कर रहा हूं। मुझे बदलती परिस्थितियों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना आ गया है तथापि मैं भीतर से अपरिवर्तित ही हूं। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ २४) * ब्रह्मचर्य क्या है ? यह जीवन का एक ऐसा मार्ग है जो हमें परमेश्वर की ओर अग्रसर करता है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ २४) * प्रत्येक भौतिक आपदा के पीछे एक दैवी उद्देश्य विद्यमान होता है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ २४) * सत्याग्रह और चरखे का घनिष्ठ संबंध है तथा इस अवधारणा को जितनी अधिक चुनौतियां दी जा रही हैं इससे मेरा विश्वास और अधिक दृढ होता जा रहा है। -- (महात्मा, भाग ५ के पृष्ठ २६४) * हमें बच्चों को ऐसी शिक्षा नहीं देनी चाहिए जिससे वे श्रम का तिरस्कार करें। -- (एविल रोट बाइ द इंग्लिश मीडीयम, १९५८ २०) * सभ्यता का सच्चा अर्थ अपनी इच्छाओं की अभिवृद्धि न कर उनका स्वेच्छा से परित्याग करना है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ १८९) * अंतत : अत्याचार का परिणाम और कुछ नहीं केवल अव्यवस्था ही होती है। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ १०२) * हमारा समाजवाद अथवा साम्यवाद अहिंसा पर आधारित होना चाहिए जिसमें मालिक मजदूर एवं जमींदार किसान के मध्य परस्पर सद्भावपूर्ण सहयोग हो। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २५५) * किसी भी समझौते की अनिवार्य शर्त यही है कि वह अपमानजनक तथा कष्टप्रद न हो। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ६७) * यदि शक्ति का तात्पर्य नैतिक दृढता से है तो स्त्री पुरुषों से अधिक श्रेष्ठ है। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ ३) * स्त्री पुरुष की सहचारिणी है जिसे समान मानसिक सामथ्र्य प्राप्त है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९२) * जब कोई युवक विवाह के लिए दहेज की शर्त रखता है तब वह न केवल अपनी शिक्षा और अपने देश को बदनाम करता है बल्कि स्त्री जाति का भी अपमान करता है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९८) * धर्म के नाम पर हम उन तीन लाख बाल-विधवाओं पर वैधव्य थोप रहे हैं जिन्हें विवाह का अर्थ भी ज्ञात नहीं है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २२७) * स्त्री जीवन के समस्त पवित्र एवं धार्मिक धरोहर की मुख्य संरक्षिका है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९३) * महाभारत के रचयिता ने भौतिक युद्ध की अनिवार्यता का नहीं वरन् उसकी निरर्थकता का प्रतिपादन किया है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ९७) * स्वामी की आज्ञा का अनिवार्य रूप से पालन करना परतंत्रता है परंतु पिता की आज्ञा का स्वेच्छा से पालन करना पुत्रत्व का गौरव प्रदान करती है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ २२७) * भारतीयों के एक वर्ग को दूसरेे के प्रति शत्रुता की भावना से देखने के लिए प्रेरित करने वाली मनोवृत्ति आत्मघाती है। यह मनोवृत्ति परतंत्रता को चिरस्थायी बनानेे में ही उपयुक्त होगी। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ ३५२) * स्वतंत्रता एक जन्म की भांति है। जब तक हम पूर्णत : स्वतंत्र नहीं हो जाते तब तक हम परतंत्र ही रहेंगे। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ३११) * आधुनिक सभ्यता ने हमें रात को दिन में और सुनहरी खामोशी को पीतल के कोलाहल और शोरगुल में परिवर्तित करना सिखाया है। -- (ट्रुथ इज गॉड, १९५५ पृष्ठ ६०) * मनुष्य तभी विजयी होगा जब वह जीवन-संघर्ष के बजाय परस्पर-सेवा हेतु संघर्ष करेगा। -- (महात्मा, भाग ४ के पृष्ठ ३६) * अयोग्य व्यक्ति को यह अधिकार नहीं है कि वह किसी दूसरे अयोग्य व्यक्ति के विषय में निर्णय दे। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २२३) * धर्म के बिना व्यक्ति पतवार बिना नाव के समान है। -- (महात्मा, भाग ३ के पृष्ठ २२३) * सादगी ही सार्वभौमिकता का सार है। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ ८२) * अहिंसा पर आधारित स्वराज्य में, व्यक्ति को अपने अधिकारों को जानना उतना आवश्यक नहीं है जितना कि अपने कर्तव्यों का ज्ञान होना। -- (माइंड ऑफ महात्मा गांधी, तृतीय प्रकाशन, १९६८, पृष्ठ २९२) * मजदूर के दो हाथ जो अर्जित कर सकते हैं वह मालिक अपनी पूरी संपत्ति द्वारा भी प्राप्त नहीं कर सकता। -- (महात्मा, भाग ७ के पृष्ठ ३३) * अपनी भूलों को स्वीकारना उस झाडू के समान है जो गंदगी को साफ कर उस स्थान को पहले से अधिक स्वच्छ कर देती है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ८४) * पराजय के क्षणों में ही नायकों का निर्माण होता है। अंत : सफलता का सही अर्थ महान असफलताओं की श्रृंखला है। -- (महात्मा, भाग २ के पृष्ठ ८४) * थोडा सा अभ्यास बहुत सारे उपदेशों से बेहतर है। * पूर्ण धारणा के साथ बोला गया "नहीं" सिर्फ दूसरों को खुश करने या समस्या से छुटकारा पाने के लिए बोले गए “हाँ” से बेहतर है। * पूंजी अपने-आप में बुरी नहीं है, उसके गलत उपयोग में ही बुराई है। किसी ना किसी रूप में पूंजी की आवश्यकता हमेशा रहेगी। * मैं मरने के लिए तैयार हूँ, पर ऐसी कोई वज़ह नहीं है जिसके लिए मैं मारने को तैयार हूँ। * जब मैं निराश होता हूँ, मैं याद कर लेता हूँ कि समस्त इतिहास के दौरान सत्य और प्रेम के मार्ग की ही हमेशा विजय होती है। कितने ही तानाशाह और हत्यारे हुए हैं, और कुछ समय के लिए वो अजेय लग सकते हैं, लेकिन अंत में उनका पतन होता है। इसके बारे में सोचो- हमेशा। * उपदेश करने से पहले खुद के गुण देखने चाहिए। * सुखद जीवन का भेद त्याग पर आधारित है। त्याग ही जीवन है। * जब तक गलती करने की स्वतंत्रता ना हो तब तक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है। ==इन्हें भी देखें== *[[महात्मा गांधी के विचार]] ==बाह्य सूत्र== {{कॉमन्स श्रेणी|Mohandas K. Gandhi|{{PAGENAME}}}} {{wikipedia}} * [http://www.hindi.mkgandhi.org/efg.htm सुविचार (गांधीजी के शब्दों में)] *[https://www.gyanipandit.com/mahatma-gandhi-quotes-in-hindi-with-image/ महात्मा गांधी के सर्वश्रेष्ठ अनमोल विचार] *[https://www.activehindi.com/2020/06/mahatma-gandhi-biography-in-hindi.html महात्मा गांधी की जीवनी] [[श्रेणी:राजनेता]] k7lnobqq1sioeasdiptp1fseamdr564 महाभारत 0 6048 23966 22798 2022-08-29T03:32:58Z अनुनाद सिंह 658 /* महाभारत के बारे में */ wikitext text/x-wiki '''महाभारत''' [[संस्कृत]] का एक महाकाव्य है जिसकी रचनाकाल के बारे में बहुत मतभेद है। विभिन्न विद्वानों ने इसका रचनाकाल ३१०० ईसापूर्व से लेकर ४०० ईसवी तक मानते हैं। मैकडोनाल्ड और भण्डारकर इसका रचनाकाल रामायण (१६०० ई.पू.) तथा गृहसूत्रों (४००ई.पू.) के मध्य ५०० ई.पू. मानते हैं। महाभारत की सबसे बड़ी पाण्डुलिपि में लगभग २० लाख शब्द हैं। कभी-कभी इसे विश्व का सबसे बड़ा काव्य माना जाता है। ----- * ''निर्वनो वध्यते व्याघ्रो निर्व्याघ्रं छिद्यते वनम् । : ''तस्माद्व्याघ्रो वनं रक्षेद्वनं व्याघ्रं च पालयेत् ॥ : अर्थ - बिना वन के व्याघ्र (वाघ) का वध हो जाता है, (और) व्याघ्ररहित वन भी काट दिया जाता है। इसलिए व्याघ्र को चाहिये कि वह वन की रक्षा करे और वन को चाहिए कि वह (अपने अन्दर) व्याघ्र को पाले। * अत्यन्त लोभी का धन तथा अधिक आसक्ति रखनेवाले का काम - ये दोनों ही धर्म को हानि पहुंचाते हैं। * अधिक बलवान तो वे ही होते हैं जिनके पास बुद्धि बल होता है। जिनमें केवल शारीरिक बल होता है, वे वास्तविक बलवान नहीं होते। * अपनी दृष्टि सरल रखो, कुटिल नहीं। सत्य बोलो, असत्य नहीं। दूरदर्शी बनो, अल्पदर्शी नहीं। परम तत्व को देखने का प्रयास करो, क्षुद्र वस्तुओं को नहीं। * अपनी निन्दा सहने की शक्ति रखने वाला व्यक्ति मानों विश्व पर विजय पा लेता है। * अपनी प्रभुता के लिए चाहे जितने उपाय किए जाएं परन्तु शील के बिना संसार में सब फीका है। * अपने पूर्वजों का सम्मान करना चाहिए। उनके बताए हुए मार्ग पर चलना चाहिए। उनके दिए उपदेशों का आचरण करना चाहिए। * अभीष्ट फल की प्राप्ति हो या न हो, विद्वान पुरुष उसके लिए शोक नहीं करता। * अमृत और मृत्यु दोनों इस शरीर में ही स्थित हैं। मनुष्य मोह से मृत्यु को और सत्य से अमृत को प्राप्त होता है। * अविश्वास से अर्थ की प्राप्ति नहीं हो सकती और हो भी जाए, तो जो विश्वासपात्र नहीं है उससे कुछ लेने को जी ही नहीं चाहता। अविश्वास के कारण सदा भय लगा रहता है और भय से जीवित मनुष्य मृतक के समान हो जाता है। * अशांत को सुख कैसे हो सकता है। सुखी रहने के लिए शान्ति बहुत जरुरी है। * अहंकार मानव का और मानव समाज का इतना बङा शत्रु है, जो सम्पुर्ण मानव जाति के कष्ट का कारण और अन्ततः विनाश का द्वार बनता है। * अहिंसा परम धर्म है अहिंसा परम तप है अहिंसा परम ज्ञान है अहिंसा परम पद है। * आशा ही दुख की जननी है और निराशा ही परम सुख शांति देने वाली है। * उसी की बुद्धि स्थिर रह सकती है जिसकी इंद्रियाँ उसके वश मेँ हो। * एक बुरा आदमी उतना ही प्रसन्न होता है जितना कि एक अच्छा आदमी दूसरों के बीमार बोलने से व्यथित होता है। * एकमात्र विद्या ही परम तृप्ति देने वाली है। * कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है। * कर्म करते जाओ, फल की चिंता मत करो। * किसी का सहारा लिए बिना कोई ऊंचे नहीं चढ़ सकता, अतः सबको किसी प्रधान आश्रय का सहारा लेना चाहिए। * किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए और न किसी प्रकार उसे सुनना ही चाहिए। * किसी के प्रति मन मेँ क्रोध रखने की अपेक्षा उसे तत्काल प्रकट कर देना अधिक अच्छा है जैसे पल मेँ जल जाना देर तक सुलगने से अच्छा है। * क्षमा धर्म है, क्षमा यज्ञ है, क्षमा वेद है और क्षमा शास्त्र है। जो इस प्रकार जानता है, वह सब कुछ क्षमा करने योग्य हो जाता है। * गहरे जल से भरी हुई नदियां समुद्र में मिल जाती हैं परंतु जैसे उनके जल से समुद्र तृप्त नहीं होता, उस प्रकार चाहे जितना धन प्राप्त हो जाए, पर लोभी तृप्त नहीं होता। * चतुर मित्र सबसे श्रेष्ठ व मार्ग-प्रदर्शक होता है। * जब बोलते समय वक्ता श्रोता की अवहेलना करके दूसरे के लिए अपनी बात कहता है, तब वह वाक्य श्रोता के हृदय में प्रवेश नहीं करता है। * जहां कृष्ण हैं वहां धर्म है, और जहां धर्म है वहां जय है। * जहां लुटेरो के चंगुल मे फंस जाने पर झूठी शपथ खाने से छुटकारा मिलता हो, वहां झूठ बोलना ही ठीक है। ऐसे मे उसे ही सत्य समझना चाहिए। * जहाँ सब लोग नेता बनने के इच्छुक हों, जहाँ सब सम्मान चाहते हों और पंडित बनते हों, जहाँ सभी महत्वाकांक्षी हों, वह समुदाय पतित और नष्ट हुए बिना नहीं रह सकता। * जिस परिवार व राष्ट्र में स्त्रियों का सम्मान नहीं होता, वह पतन व विनाश के गर्त में लीन हो जाता है। * जिस मनुष्य की बुद्धि दुर्भावना से युक्त है तथा जिसने अपनी इंद्रियों को वश में नहीं रखा है, वह धर्म और अर्थ की बातों को सुनने की इच्छा होने पर भी उन्हें पूर्ण रूप से समझ नहीं सकता। * जिस राजा की प्रजा हमेशा कर के भार से पीड़ित रहे, प्रतिदिन दुखी रहे और जिसे तरह-तरह के अनर्थ झेलने पड़ते हैं, उस राजा की हमेशा पराजय होती है। * जिसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है, वह मनुष्य सदा पाप ही करता रहता है। पुनः-पुनः किया हुआ पुण्य बुद्धि को बढ़ाता है। * जिसके मन में संशय भरा हुआ है, उसके लिए न यह लोक है, न परलोक है और न सुख ही है। * जिसके साथ सत्य हो, उसके साथ धर्म है, और जिसके साथ धर्म हो, उसके साथ परमेश्वर है, और जिसके साथ स्वयं परमेश्वर हो उसके पास सब कुछ है। * जिसने इच्छा का त्याग किया है, उसको घर छोड़ने की क्या आवश्यकता है, और जो इच्छा का बंधुआ मज़दूर है, उसको वन में रहने से क्या लाभ हो सकता है? सच्चा त्याबी जहां रहे वहीं वन और वही भवन-कंदरा है। * जिसने पहले तुम्हारा उपकार किया हो, वह यदि बड़ा अपराध करे तो भी उनके उपकार की याद करके उसका अपराध क्षमा दो। * जिसमें सत्य नहीं, वह धर्म नहीं और जो कपटपूर्ण हो, वह सत्य नहीं है। * जिसे सत्य पर विश्वास होता है, और जो अपने संकल्प पर दृढ होता है, उसका सदैव कल्याण होता रहता है। * जुआ खेलना अत्यंत निष्कृष्ट कर्म है। यह मनुष्य को समाज से गिरा देता है। * जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिए। * जैसे तेल समाप्त हो जाने पर दीपक बुझ जाता है, उसी प्रकार कर्म के क्षीण हो जाने पर दैव भी नष्ट हो जाता है। * जैसे बिना नाविक की नाव जहाँ कहीं भी जल में बह जाती है और बिना सारथी का रथ चाहे जहाँ भटक जाता है। उसी प्रकार सेनापति बिना सेना जहाँ चाहे भाग सकती है। * जैसे सूखी लकड़ी के साथ मिली होने पर गीली लकड़ी भी जल जाती है, उसी प्रकार दुष्ट-दुराचारियों के साथ सम्पर्क में रहने पर सज्जन भी दुःख भोगते है। * जो केवल दया से प्रेरित होकर सेवा करते हैँ उन्हें निःसंशय सुख की प्राप्ति होती है। * जो जैसा शुभ या अशुभ कर्म करता है अवश्य ही उसका फल भोगता है। * जो मनुष्य अपनी निंदा सह लेता है, उसने मानो सारे जगत पर विजय प्राप्त कर ली। * जो मनुष्य अपने माता-पिता की सेवा पुरे सद्भाव से करते है, उनकी ख्याति इस लोक मे ही नही बल्कि परलोक मे भी होती है। * जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं, क्षमा करता है, वह अपनी और क्रोध करने वाले की महा संकट से रक्षा करता है। वह दोनों का रोग दूर करने वाला चिकित्सक है। * जो मनुष्य जिसके साथ जैसा व्यवहार करे उसके साथ भी उसे वैसा व्यवहार करना चाहिए, यह धर्म है। * जो मनुष्य न किसी से द्वेष करता है, और न किसी चीज़ की अपेक्षा करता है, वह सदा ही संन्यासी समझने के योग्य है। * जो मनुष्य नाश होने वाले सब प्राणियों में सम भाव से रहने वाले अविनाशी परमेश्वर को देखता है, वही सत्य को देखता है। * जो विपत्ति पड़ने पर कभी दुखी नहीं होता, बल्कि सावधानी के साथ उद्योग का आश्रय लेता है तथा समय आने पर दुख भी सह लेता है, उसके शत्रु पराजित ही हैं। * जो वेद और शास्त्र के ग्रंथों को याद रखने में तत्पर है किन्तु उनके यथार्थ तत्व को नहीं समझता, उसका वह याद रखना व्यर्थ है। * जो सज्जन ता का अतिक्रमण करता है उसकी आयु संपत्ति, यश, धर्म, पुण्य, आशीष, श्रेय नष्ट हो जाते हैँ। * ज्ञानरूप, जानने योग्य और ज्ञान से प्राप्त होने वाला परमात्मा सबके हृदय में विराजमान है। * झूठे पर विश्वास और विश्वस्त पर भी विश्वास सहसा नहीं करना चाहिए। * दुख को दूर करने की एक ही अमोघ औषधि है- मन से दुखों की चिंता न करन। * दुखों में जिसका मन उदास नहीं होता, सुखों में जिसकी आसक्ति नहीं होती तथा जो राग, भय व क्रोध से रहित होता है, वही स्थितिप्रज्ञ है। * दूसरों के लिए भी वही चाहो जो तुम अपने लिए चाहते हो। * दूसरों से घृणा करने वाले, दूसरों से ईर्ष्या करने वाले, असंतोषी, क्रोध, सभी बातों में शंका करने वाले और दूसरे के धन से जीविका निर्वाह करने वाले ये छहों सदा दुखी रहते हैं। * दो प्रकार के व्यक्ति संसार में स्वर्ग के भी ऊपर स्थिति होते हैं- एक तो जो शक्तिशाली होकर क्षमा करता है और दूसरा जो दरिद्र होकर भी कुछ दान करता रहता है। * द्वैष से सदैव दूर रहें। * धर्म का पालने करने पर जिस धन की प्राप्ति होती है, उससे बढ़कर कोई धन नहीं है। * धर्म, सत्य, सदाचार, बल और लक्ष्मी सब शील के ही आश्रय पर रहते हैं। शील ही सबकी नींव है। * न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु। स्वार्थ से ही मित्र और शत्रु एक-दूसरे से बंधे हुए हैं। * नारी प्रकृति की बेटी है, उस पर क्रोध मत करो, उसका हृदय कोमल है, उस पर विश्वास करो। * नारी वह धुरी है, जिसके चारों ओर परिवार घूमता है। * निरोगी रहना, ऋणी न होना, अच्छे लोगों से मेल रखना, अपनी वृत्ति से जीविका चलाना और निभर्य होकर रहना- ये मनुष्य के सुख हैं। * परिवर्तन इस संसार का अटल नियम है, और सब को इसे स्वीकारना ही पड़ता है; क्योकि कोई इसे बदल नही सकता। * परोपकार सबसे बड़ा पुण्य और परपीड़ा यानि दूसरों को कष्ट देना सबसे बड़ा पाप है। * पुरुषार्थ का सहारा पाकर ही भाग्य भली भांति बढ़ता है। * पुरुषार्थ नहीं करते वे धन, मित्र, ऐश्वर्य, उत्तम कुल तथा दुर्लभ लक्ष्मी का उपयोग नहीं कर सकते। * प्रयत्न न करने पर भी विद्वान लोग जिसे आदर दें, वही सम्मानित है। इसलिए दूसरों से सम्मान पाकर भी अभिमान न करे। * प्राप्त हुए धन का उपयोग करने में दो भूलें हुआ करती हैं, जिन्हें ध्यान में रखना चाहिए। अपात्र को धन देना और सुपात्र को धन न देना। * प्रिय वस्तु प्राप्त होने पर भी तृष्णा तृप्त नहीं होती, वह ओर भी भड़कती है जैसे ईधन डालने से अग्नि। * प्रेम जैसा कोई सुख नहीँ है। * बड़े से बड़ा शूरवीर भी अगर अधर्म और अन्याय का साथ देता है तो धर्म के आगे उसे अन्ततः झुकना ही पड़ता है। * बलवती आशा कष्टप्रद है। नैराश्य परम सुख है। * बाणों से बिंधा हुआ तथा फरसे से कटा हुआ वन भी अंकुरित हो जाता है, किंतु कटु वचन कहकर वाणी से किया हुआ भयानक घाव नहीं भरता। * बुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि सुख या दुख, प्रिय अथवा अप्रिय, जो प्राप्त हो जाए, उसका हृदय से स्वागत करे, कभी हिम्मत न हारे। * बुरे कर्मों का बुरा परिणाम निकलता है। * बैर के कारण उत्पन होने वाली आग एक पक्ष को स्वाहा किए बिना कभी शांत नहीं होती। * मधुर शब्दों में कही हुई बात अनेक प्रकार से कल्याण करती है, किंतु यही यदि कटु शब्दों में कही जाए तो महान अनर्थ का कारण बन जाती है। * मन का दुख मिट जाने पर शरीर का दुख भी मिट जाता है। * मन में संतोष होना स्वर्ग की प्राप्ति से भी बढ़कर है, संतोष ही सबसे बड़ा सुख है। संतोष यदि मन में भली-भांति प्रतिष्ठित हो जाए तो उससे बड़कर संसार में कुछ भी नहीं है। * मन से दुखों का चिंतन न करना ही दुखों के निवारण की औषधि है। * मन, वचन और कर्म से प्राणी मात्र के साथ अद्रोह, सब पर कृपा और दान यही साधु पुरूषों का सनातन धर्म है। * मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान - यह सज्जनों का सनातन धर्म है। * मनुष्य का पराक्रम उसके सब अनर्थ दूर कर देता है। * मनुष्य को अपनी मातृभूमि सर्वोपरि रखनी चाहिए और हर परिस्थत मे उसकी रक्षा करनी चाहिए। * मनुष्य जीवन की सफलता इसी में है कि वह उपकारी के उपकार को कभी न भूले। उसके उपकार से बढ़ कर उसका उपकार कर दे। * मनुष्य दूसरे के जिस कर्म की निंदा करे उसको स्वयं भी न करे। जो दूसरे की निंदा करता है किंतु स्वयं उसी निंद्य कर्म में लगा रहता है, वह उपहास का पात्र होता है। * माता के रहते मनुष्य को कभी चिंता नहीं होती, बुढ़ापा उसे अपनी ओर नहीं खींचता। जो अपनी मां को पुकारता हुआ घर में प्रवेश करता है, वह निर्धन होता हुआ भी मानो अन्नपूर्णा के पास चला आता है। * मेरा कहना तो यह है कि प्रमाद मृत्यु है और अप्रमाद अमृत। * मोह मे फंसकर अधर्म का प्रतिकार न करने के कारण ही महाभारत जैसे युध्द से महान जन-धन की हानि हुई। * मौत आती है, और एक आदमी को अपना शिकार बनाती है, एक ऐसा आदमी जिसकी शक्तियां अभी तक अनपेक्षित हैं; फूलों के इरादे को इकट्ठा करने की तरह, जिनके विचार दूसरे तरीके से बदल जाते हैं। अच्छी प्रैक्टिस करने के लिए दांव लगाना शुरू करें, ऐसा न हो कि भाग्य आपके लिए योजनाओं और परवाह के दौर को अनदेखा कर दे; दुःखद कार्य करने के लिए दिन का समापन। * यदि अपने पास धन इकट्ठा हो जाए, तो वह पाले हुए शत्रु के समान है क्योंकि उसे छोड़ना भी कठिन हो जाता है। * यदि पानी पीते – पीते उसकी बूंद मुंह से निकलकर भोजन में गिर पड़े तो वह खाने योग्य नहीं रहता। पीने से बचा हुआ पानी पुनः पीने के योग्य नहीं होता। * ये इन्द्रियाँ ही स्वर्ग और नरक है। इनको वश में रखना स्वर्ग और स्वतंत्र छोड़ देना नर्क है। * राजधर्म एक नौका के समान है। यह नौका धर्म रूपी समुद्र में स्थित है। सतगुण ही नौका का संचालन करने वाला बल है, धर्मशास्त्र ही उसे बांधने वाली रस्सी है। * राजन, यद्यपि कहीं-कहीं शीलहीन मनुष्य भी राज्य लक्ष्मी प्राप्त कर लेते हैं, तथापि वे चिरकाल तक उसका उपभोग नहीं कर पाते और मूल सहित नष्ट हो जाते हैं। * राजा की स्थिति प्रजा पर ही निर्भर होती है। जिसे पुरवासी और देशवासियों को प्रसन्न रखने की कला आती है, वह राजा इस लोक और परलोक में सुख पाता है। * लज्जा नारी का अमूल्य रत्न है। * लोभ धर्म का नाशक है। * लोभी मनुष्य किसी कार्य के दोषों को नहीं समझता, वह लोभ और मोह से प्रवृत्त हो जाता है। * विजय की इच्छा रखने वाले शूरवीर अपने बल और पराक्रम से वैसी विजय नहीं पाते, जैसी कि सत्य, सज्जनता, धर्म तथा उत्साह से प्राप्त कर लेते हैं। * विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है। * विद्या, शूरवीरता, दक्षता, बल और धैर्य, ये पांच मनुष्य के स्वाभाविक मित्र हैं। बुद्धिमान लोग हमेशा इनके साथ रहते हैं। * विधि के विधान के आगे कोई नही टिक सकता। एक पुरुर्षाथी को भी वक्त के साथ मिट कर इतिहास बन जाना पड़ता है। * विपत्ति के आने पर अपनी रक्षा के लिए व्यक्ति को अपने पड़ोसी शत्रु से भी मेल कर लेना चाहिए। * विवेकी पुरुष को अपने मन में यह विचार करना चाहिए कि मैं कहां हूं, कहां जाऊंगा, मैं कौन हूं, यहां किसलिए आया हूं और किसलिए किसका शोक करूं। * विषयों के भोगों से विषय वासना की शांति नहीं होती, हवन से बढती हुई अग्नि के समान यह काम वासना नित्य बढती ही जाती है। * व्यक्ति को अभिमान नहीं करना चाहिए नहीं तो दुर्योधन जैसा हाल होगा। * शरणागत की रक्षा करना बहुत ही पुनीत कर्म है, ऐसा करने से पापी के भी पाप का प्रायश्चित हो जाता है। * शोक करनेवाला मनुष्य न तो मरे हुए के साथ जाता है और न स्वयं ही मरता है। जब लोक की यही स्वाभाविक स्थिति है तब आप किस लिए बार-बार शोक कर रहे हैं। * सच्चा धर्म यह है कि जिन बातों को इन्सान अपने लिए अच्छा नहीं समझता दूसरों के लिए भी न करे। * सत्पुरुष दूसरों के उपकारों को ही याद रखते हैं, उनके द्वारा किए हुए बैर को नहीं। * सत्य से सूर्य तपता है, सत्य से आग जलती है, सत्य से वायु बहती है, सब कुछ सत्य में ही प्रतिष्ठित है। * सत्य ही धर्म, तप और योग है। सत्य ही सनातन ब्रह्मा है, सत्य को ही परम यज्ञ कहा गया है तथा सब कुछ सत्य पर ही टिका है। * सत्य, धर्म, सम्मान, आदि जगहो पे झुकने से मनुष्य कीर्तिवान, और यशस्वी बन जाता है। * सदाचार से धर्म उत्पन्न होता है तथा धर्म से आयु बढ़ती है। * सभी को भ्रातृभाव से रहना चाहिए। * समय अत्यधिक बलवान होता है, एक क्षण मे समस्त परिस्थितियाँ बदल जाती है। * संसार में ऐसा कोई नहीं हुआ है जो मनुष्य की आशाओं का पेट भर सके। पुरुष की आशा समुद्र के समान है, वह कभी भरती ही नहीं। * संसार में वही मनुष्य प्रशंसा के योग्य है, वही उत्तम है, वही सत्पुरुष और वही धनी है, जिसके यहाँ से याचक या शरणागत निराश न लौटे। * सो कर नींद जीतने का प्रयास न करें। कामोपयोग के द्वारा स्त्री को जीतने की इच्छा न करें। * स्वार्थ की अनुकूलता और प्रतिकूलता से ही मित्र और शत्रु बना करते हैं। * स्वार्थ बड़ा बलवान है। इसी कारण कभी-कभी मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु मित्र। ==महाभारत के बारे में== * ''धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ।'' : ''यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत् क्वचित्॥'' : अर्थ : धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष के विषय में जो भी ज्ञात है वह सब महाभारत में है। (किन्तु) जो यहाँ नहीं है वह कहीं नहीं है। * महाभारत में, राज्याभिषेक के समय उपदेश में यह भी कहा गया है कि राजा को माली (मालाकार) के समान होना चाहिये न कि लकड़ी का कोयला बनाने वाले (आङ्गारिक) की तरह। माला सामाजिक समरसता का संकेत करता है, यह धार्मिक विविधता का रूपक है जिसमें विभिन्न रंगों के फूल मिलकर अत्यन्त सुखदायक प्रभाव उत्पन्न करते हैं। उसके विपरीत लकड़ी का कोयला बनाने वाला पाशविक शक्ति का प्रतीक है जो विविधता को (जलाकर) एकरूपता में बदलता है, जिसमें जीवित पदार्थ को निर्जीव एकसमान राख में बदल दिया जाता है। -- राजीव मल्होत्रा, इन्द्राज नेट में ; उपरोक्त कथन में में राजीव मल्होत्रा निम्नलिखित श्लोक की बात कर रहे हैं- :: मालाकारोपमो राजन् भव माङ्गारिकोपमः । :: तथायुक्तश्चिरं राष्ट्रं भोक्तुं शक्यसि पालयन् ॥ ==इन्हें भी देखें== * [[भगवद्गीता]] * [[कृष्ण]] * [[पुराण]] 8356y0cm9kzi1v38ibucabceexs4kfq व्याकरण 0 6359 23961 23863 2022-08-28T12:12:47Z अनुनाद सिंह 658 wikitext text/x-wiki * ''यद्यपि बहु नाधीषे तथापि पठ पुत्र व्याकरणम्। : ''स्वजनो श्वजनो माऽभूत्सकलं शकलं सकृत्शकृत्॥ :(पुत्र ! यदि तुम बहुत विद्वान नहीं बन पाते हो तो भी व्याकरण (अवश्य) पढ़ो ताकि 'स्वजन' 'श्वजन' (कुत्ता) न बने और 'सकल' (सम्पूर्ण) 'शकल' (टूटा हुआ) न बने तथा 'सकृत्' (किसी समय) 'शकृत्' (गोबर का घूरा) न बन जाय।) * ''यस्य षष्ठी चतुर्थी च विहस्य च विहाय च । : ''यस्याहं च द्वितीया स्याद् द्वितीया स्यामहं कथम् ॥ : अर्थ - जो पुरुष 'विहस्य' और 'विहाय' इन दोनों शब्दों को षष्ठी और चतुर्थी समझता है, 'अहम्' शब्द को द्वितीया समझता है, उसकी मैं कैसे पत्नी (द्वितीया) बन सकती हूँ? * ''अनन्तपारं किल शब्दशास्त्रं स्वल्पं तथायुर्बहवश्च विघ्नाः। : ''यत्सारभूतं तदुपासनीयं हंसैर्यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात् ॥ -- पञ्चतन्त्रम्, प्रथमः तन्त्रः “मित्रभेदो” नाम : तात्पर्य : केवल व्याकरणशास्त्र का ही विचार करें, तो उसका भी कोई अन्त ही नहीं है। मानव की सम्पूर्ण आयु भी इसके अध्ययन के लिए अल्प है। जो सारभूत है, उसी का अध्ययन करना चाहिए, जैसे नीर-क्षीर विवेक से हंस इन दोनों के मिश्रण से केवल क्षीर को ही अलग करके पीता है। * ''न सोऽस्ति प्रत्ययो लोके यः शब्दानुगमात्त्ते । : ''अनुविद्धमिव ज्ञानं सर्वं शब्देन भासते ॥'' -- भर्तृहरि, वाक्यपदीय में : संसार का कोई भी ज्ञान शब्द से ही प्रकाशित होता है, शब्द के बाह्य तथा अन्तः स्वरुप को समझने के लिए तत्तत् वैयाकरणों ने अनेक शब्दानुशासनों की रचना की है। * ''नूनं व्याकरणं कृत्स्नमनेन बहुधा श्रुतम् । : ''बहु व्याहरताऽनेन न किञ्चिदपशब्दितम् ॥'' -- वाल्मीकि रामायण : (राम कहते हैं कि) ऐसा लगता है कि इन्होंने (हनुमान ने) अवश्य ही सम्पूर्ण व्याकरण का अनेक प्रकर से अध्ययन किया है क्योंकि इनके द्वारा उच्चारित बहुत से शब्दों में कोई भी त्रुटि नहीं है। * ''सर्वार्थानां व्याकरणाद् वैयाकरण उच्यते । : ''तन्मूलतो व्याकरणं व्याकरोतिती तत्तथा ॥'' -- महाभारत, उद्योगपर्व : जो पाठक शब्द के समस्त अर्थों को व्याकृत करता है उसे वैयाकरण कहते हैं। शब्दों को व्याकृत करने वाला शास्त्र ही व्याकरण कहलाता है। * यदि व्याकरण को अच्छी त्रह समझ लिया जाय तो वह हमे अपनी बात को न केवल पूर्णता और स्पष्टता से कहने में सक्षम बनाता है बल्कि हमे यह भी शक्ति देता है कि हम ऐसे शब्द प्रयोग करें जिनका दूसरे लोग चाहकर भी कोई दूसरा अर्थ न निकाल सकें। -- William Cobbett in: A Grammar of the English Language: The 1818 New York First Edition Wih Passages Added in 1819, 1820, and 1823, Rodopi, 1983, p. 34 * पाणिनीय व्याकरण मानवीय मष्तिष्क की सबसे बड़ी रचनाओं में से एक है। -- लेनिनग्राड के प्रोफेसर टी. शेरवात्सकी * पाणिनीय व्याकरण की शैली अतिशय-प्रतिभापूर्ण है और इसके नियम अत्यन्त सतर्कता से बनाये गये हैं। -- कोल ब्रुक * संसार के व्याकरणों में पाणिनीय व्याकरण सर्वशिरोमणि है।.. यह मानवीय मष्तिष्क का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अविष्कार है। -- सर डब्ल्यू. डब्ल्यू. हण्डर * पाणिनीय व्याकरण उस मानव-मष्तिष्क की प्रतिभा का आश्चर्यतम नमूना है जिसे किसी दूसरे देश ने आज तक सामने नहीं रखा। -- प्रो॰ मोनियर विलियम्स sit9dkxc9uzgejuaeuaiwnu61fko9ox सीताराम गोयल 0 6539 23967 23320 2022-08-29T04:03:17Z अनुनाद सिंह 658 wikitext text/x-wiki '''सीताराम गोयल''' (16 अक्टूबर 1921 – 3 दिसम्बर 2003) भारत के एक प्रमुख विचारक, इतिहासकार, लेखक एवं प्रकाशक थे। ==प्रमुख विचार== * सत्य हमारा एकमात्र शस्त्र है। -- सन २०१५ में Koenraad Elst द्वारा 'मोदी टाइम' पर * मुझे थोड़ा भी सन्देह नहीं है कि इस्लाम के सन्दर्भ में जिसे 'हिन्दू सहनशीलता' कहा जाता है वह अज्ञानता और कायरता के मिश्रण के अलावा और कुछ नहीं है। -- Islam vis-a-vis Hindu temples में (1993) * पाणिनि की अष्टाध्यायी जैसा एक छोटा ग्रन्थ भी भारत के सभी जनपदों की लगभग पूरी गणना प्रदान करता है। -- सीता राम गोयल ने एस. तलागेरी, द आर्यन आक्रमण सिद्धांत और भारतीय राष्ट्रवाद (1993) में। l0tjce0rnqde5xb4djac75wy3gfjsb2 भारतीय साहित्य 0 6725 23962 23960 2022-08-29T03:08:11Z अनुनाद सिंह 658 wikitext text/x-wiki भारतीय साहित्य से तात्पर्य सन् १९४७ के पहले तक भारतीय उपमहाद्वीप एवं तत्पश्चात् भारत गणराज्य में निर्मित वाचिक और लिखित साहित्य से है। विश्व का सबसे पुराना वाचिक साहित्य आदिवासी भाषाओं में मिलता है। इस दृष्टि से आदिवासी साहित्य सभी साहित्य का मूल स्रोत है। यदि आधुनिक भारतीय भाषाओं के ही सम्पूर्ण वाङ्मय का संचयन किया जाये तो वह यूरोप के संकलित वाङ्मय से किसी भी दृष्टि से कम नहीं होगा। वैदिक संस्कृत, संस्कृत, पालि, प्राकृतों और अपभ्रंशों का समावेश कर लेने पर तो उसका अनन्त विस्तार कल्पना की सीमा को पार कर जाता है। इन सभी साहित्यों में अपनी-अपनी विशिष्ट विभूतियां हैं। तमिल का संगम-साहित्य, तेलगु के द्वि-अर्थी काव्य और उदाहरण तथा अवधान-साहित्य, मलयालम के संदेश-काव्य एवं कीर-गीत (किलिप्पाट्टु) तथा मणिप्रवालम् शैली, मराठी के वोवाडे, गुजराती के आख्यान और फागु, बँगला का मंगल काव्य, असमिया के बरगीत और बुरंजी साहित्य, पंजाबी के रम्याख्यान तथा वीरगति, उर्दू की गजल और हिन्दी का रीतिकाव्य तथा छायावाद आदि अपने-अपने भाषा–साहित्य के वैशिष्ट्य के उज्ज्वल प्रमाण हैं। फिर भी कदाचित् यह पार्थक्य आत्मा का नहीं है। जिस प्रकार अनेक धर्मों, विचार-धाराओं और जीवन प्रणालियों के रहते हुए भी भारतीय संस्कृति की एकता असंदिग्ध है, इसी प्रकार इसी कारण से अनेक भाषाओं और अभिवयंजना-पद्धतियों के रहते हुए भी भारतीय साहित्य की मूलभूत एकता का अनुसंधान भी सहज-संभव है। भारतीय साहित्य का प्राचुर्य और वैविध्य तो अपूर्व है ही, उसकी यह मौलिकता एकता और भी रमणीय है। == उक्तियाँ == * ''धर्मे चार्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ। : ''यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत् क्वचित् ॥'' -- महाभारत, आदिपर्व (६२) तथा स्वर्गारोहणपर्व (५/५०) : (वैशम्पायन जनमेजय से कहते हैं कि) हे भरतश्रेष्ठ! धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष के विषय में जो इस ग्रन्थ में है वही दूसरे ग्रन्थों में भी है किन्तु जो यहाँ नहीं है वह कहीं भी नहीं है। * भारतीय साहित्य बौद्धिक उत्पादों और गहनतम विचारों से समृद्ध भूमि है। इसलिये हर किसी के मन में आता है कि आरम्भ में ही इस खजाने से परिचित हो लिया जाय। -- जॉर्ज डब्ल्यू एफ हेगेल (Georg Wilhelm Friedrich Hegel) ==इन्हें भी देखें== * [[हिन्दी साहित्य]] * [[संस्कृत साहित्य]] * [[साहित्य]] oqa81ak5ts3uw2c0xf7c35sle56av24